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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नहीं, जो बिलकुल दोषरहित हो। उन्होंने आलोचकोंसे कहा कि वे लोग आयें और यदि राष्ट्रीय पाठशालामें कोई त्रुटियाँ हों तो उन्हें सुधारें। उन्होंने कहा कि मैंने १९२० में प्रत्येक भारतीयके लिए धार्मिक कर्त्तव्यके रूपमें असहयोगका विधान किया था। लोगों की कमजोरीकी वजहसे यह कार्यक्रम पर्याप्त अवधितक नहीं चल सका। परन्तु यदि उस आन्दोलन से कुछ [अच्छी] चीजें अस्तित्वमें आईं, तो अन्दोलनकी समाप्ति के साथ ही उन्हें भी नष्ट कर देनेका कोई कारण नहीं है। उन्होंने कार्य-कर्त्ताओंसे हर हालत में पाठशालाको चलाते रहने की अपील की।

आगे बोलते हुए महात्माजीने कहा कि मेरे दौरेका प्रयोजन सारे देशमें खद्दरका सन्देश देना है। मैं आपके पास उसी कामके लिये पैसा माँगने आया हूँ। उन्होंने कहा यह स्वयंसिद्ध सत्य है कि देशमें चरखा समाप्त हो जानेपर ही भारतकी घातक गरीबी शुरू हुई। भारतके प्राचीन वैभवको फिरसे लानेके लिये चरखेका पुनरुत्थान नितान्त आवश्यक है। उन्होंने कहा कि लोग प्रायः धार्मिक दृष्टिसे व्रत रखते हैं। परन्तु हजारों गरीब भारतीय आज केवल अन्नके अभावमें भूखे रह रहे हैं, व्रत नहीं रख रहे हैं। अन्नके अभावका कारण है कामका अभाव। उन्होंने कहा कि चरखा ऐसी चीज है जो भूखों रहनेवाले गरीब लोगोंको थोड़ा-बहुत काम दे सकता है। उन्होंने श्रोताओंसे अपील की कि वे इस आन्दोलनकी सफलता के लिए कार्य करना अपना धार्मिक कर्त्तव्य समझें। एक समय था जब भारतमें चरखा घरके चूल्हे जैसा ही आवश्यक समझा जाता था। उन्होंने लोगोंसे अनुरोध किया कि वे इस छोटे परन्तु शक्तिशाली साधनको एक बार फिर वही महत्वपूर्ण स्थान दें। उन्होंने श्रोताओंसे अपील की कि सब लोगों को विदेशी कपड़ोंका परित्याग करना अपना पवित्र कर्त्तव्य समझना चाहिए और वही शुद्ध खादी उन्हें पहननी चाहिए जिसे उनके भाइयोंने बुना हो और जिसका सूत उनकी भूखी बहनोंने काता हो।

भाषण जारी रखते हुए महात्माजीने अस्पृश्यतापर कुछ शब्द कहे। उन्होंने कहा कि अस्पृश्यता निश्चित ही धर्मकी आड़में चली आ रही एक कुरीति ही है। अतः यह और भी अधिक तिरस्करणीय है। उन्होंने हिन्दुओंसे स्वामी श्रद्धानन्दके नामपर अपील की कि वे इस विनाशकारी परम्पराको समाप्त कर दें। उस महान सन्तके नामकी स्मृति बनाये रखनेका सर्वश्रेष्ठ तरीका यही है कि इस बुराईको दूर कर दिया जाए। उन्होंने आशा प्रकट की कि हिन्दू और मुसलमान स्वामी श्रद्धानन्दके बहे इस रक्तसे अपना हृदय धोकर शुद्ध बना लेंगे और उन्हींकी तरह निर्भीक होकर हाथमें हाथ मिलाकर अपेक्षित उद्देश्यकी ओर बढ़ेंगे।

[अंग्रेजीसे]
सर्चलाइट, ४-२-१९२७