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३१. पत्र: प्रभावतीको

[२ फरवरी, १९२७ से पूर्व][१]

चि॰ प्रभावती,

तुमको एक खत मैंने लीखा था वह मीला होगा। आश्रममें भेजनेके लिये पिताजी और मैं खूब प्रयत्न कर रहे है। सफलता मीलनेकी आशा है। मैंने तुमारे श्वसुरको खत भी लिखा है। दरम्यान सासुजीको प्रसन्नचित्त रखो और उनकी हार्दिक सेवा कीजीयो। सास भी माताके समान है ऐसा धर्म सीखाता है। सच बात तो यह है कि सुश्रूषा किसीको भी हो हमेशह आत्माकी उन्नति करती है। सुसरालमें भी अवसर मीलनेपर अभ्यास करना। मुझको नित्य लीखो।

बापूके आशीर्वाद

मूल (जी॰ एन॰ ३३३७) की फोटो-नकलसे।

३२. पत्र: ब्रजकिशोरप्रसादको

बुधवार [२ फरवरी, १९२७]‍[२]

भाई ब्रजकिशोरप्रसाद,

प्रभावतीको रोक ली [या] उससे मुझको कुछ दुःख हुआ। हम जो थोड़े आदमी धर्म और देशकी सेवा करना चाहते हैं उनको सरकार और समाज दोनोंका डर छोडना होगा। मेरा अभिप्राय है कि चि॰ प्रभावती अच्छी सेविका बन सकती है। हुशियार है, उद्यमी है और शीलवती है सेवा करनेकी इच्छा है। ऐसी लड़कीको जितनी उत्तेजना दीई जाय कम है।

उनके श्वसुरसे मेरी बात हो गई।[३]उन्होंने कहा यदी प्रभावतीको मैं आरेमें ले जाता तो उनको कोई उजुर नहिं होता। प्रभावतीकी सासका स्वास्थ्य अच्छा होनेसे प्रभाको आश्रम भेजनेके लिये भी वे तैयार है। अब मेरी सलाह है कि प्रभावतीको शीघ्रतासे आश्रम भेज दी [या] जाय। सासके लीये जबतक आवश्यक है उनकी सश्रूषाके लीये रहना चाहिये।

  1. देखिए "पत्रः प्रभावतीको", २-२-१९२७।
  2. २८ जनवरीको गांधीजी आरामें थे और यह पत्र उसके बाद ही लिखा गया प्रतीत होता है।
  3. देखिए अगला शीर्षक।