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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

  यदि मुंबई नहीं तो कलकत्ते जाकर किसी दाकतरको क्यों तबीयत न बताई जाय? तुमारे शरीर अच्छा बना लेना चाहिये। यह क्या बात है हर रोज बीमार हो जाना?

आपका,
मोहनदास

मूल (जी॰ एन॰ ३३१६) की फोटो-नकलसे।

३३. पत्र: प्रभावतीको

[२ फरवरी, १९२७][१]

चि॰ प्रभावती,

मैंने श्वसुरके साथ खूब बातें की। वे तो तुमारे आरा मेरे साथ आनेमें अनुकुल थे और तुमारे आश्रम जानेमें भी अनुकुल है। अब पिताजीसे बात करना। सासकी तबीयत दुरस्त होनेसे आश्रम चले जाना यदि पिताजी आज्ञा दें तो। विद्यावती और चन्द्रमुखीको साथ लेनेकी कोशीष कीजियो।

तुमारी आशा बहोत करता हुं।

बापूके आशीर्वाद

मूल (जी॰ एन॰ ३३०४) की फोटो-नकलसे।

३४. पत्र: मगनलाल गांधीको

गोंदिया जाते हुए गाड़ीमें
बुधवार [ २ फरवरी, १९२७][२]

चि॰ मगनलाल,

मैंने तुम्हें मीराबहनके पत्रोंसे ठसाठस भरा एक लिफाफा भेजा था; मिल गया होगा। आज अन्य पत्र भेज रहा हूँ। इन पत्रोंको सँभालकर रखते हो न? इन्हें काका साहबको पढ़नेके लिए देते हो या नहीं? न देते हो तो अब देना।

रुखीका ऑपरेशन होनेका तार पटनासे रवाना होनेके बाद मिला। ऑपरेशन हो गया, यह बहुत अच्छा हुआ। मैं वर्धामें ब्यौरेवार समाचार पानेकी आशा रखता हूँ।

  1. पिछले शीर्षकमें ब्रजकिशोरप्रसादका पत्र और यह पत्र दोनों एक दिन ही लिखे गये प्रतीत होते हैं।
  2. रुखीके ऑपरेशन और गोंदिया-यात्राके उल्लेखसे।