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भाषण: राष्ट्रीय पाठशाला, खामगाँवमें

  मेरे ऊपर बहुत बड़ी जवाबदेही है। यह एक भगवत्प्रेमी परिवार है। इनके साथ सम्बन्ध करना मुझे प्रिय है। इन्होंने सब-कुछ मुझे सौंप दिया है। आशा है, तुम मुझे धोखा बिलकुल नहीं दोगे, क्योंकि यदि सुशीलाका बाल भी बाँका होगा तो मुझे गहरा आघात पहुँचेगा। यह बालिका मुझे अपने नामके अनुरूप ही गुणवती[१] और भोली-भाली लगी है।

स्त्रियोंके सम्बन्धमें मेरी भावना तुम अच्छी तरह जानते हो। उनके साथ पुरुष ठीक व्यवहार नहीं करते। तुम मेरे आदर्शका पालन कर सकते हो, ऐसा मानकर मैंने यह सम्बन्ध कराना स्वीकार किया है।

अब यदि तुम इस सम्बन्धके लिए तैयार हो तो तार देना और ब्यौरेवार पत्र लिखना। यदि तुम्हें यह सम्बन्ध पसन्द न हो अथवा तुम उपर्युक्त शर्तोंका पालन न कर सको तो मुझे 'स्वीकार करनेमें असमर्थ'——यह[२] तार देना, अन्यथा 'सम्बन्ध स्वीकार, आपकी कसौटी पूरी कर सकूँगा'[३]——यह तार देना।

मुझे विस्तृत पत्र लिखना। मेरा मुकाम १० को जलगाँव, ११ को जलगाँव, १२ की चोपड़ा, १३, १४ और १५ को धूलिया रहेगा।

ईश्वरसे डरना और मुझे शुद्ध सत्य ही लिखना। प्रभु तुम्हारा कल्याण करे।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (सी॰ डब्ल्यू॰ ९१२४) से।

सौजन्य: सुशीलाबहन गांधी

५५. भाषण: राष्ट्रीय पाठशाला, खामगाँवमें

८ फरवरी, १९२७

मैंने यह जो इतनी परीक्षा[४] ली इसका कारण यह है कि आपकी प्रशंसा मैंने बहुत सुनी थी और अब मैं जो-कुछ कहने जा रहा हूँ वह आलोचनाके रूपमें नहीं बल्कि आपकी कोशिशोंकी कद्र करते हुए आपकी मदद करनेके खयालसे कह रहा हूँ। मुझे आपसे यह कहना ही चाहिए कि यदि आपका सबसे तेजस्वी बालक ऐसा है, तो मुझे सन्तोष नहीं हुआ। उसके [संस्कृत शब्दोंके] उच्चारणसे मुझे सन्तोष नहीं हुआ और अनुवादसे भी नहीं। अंग्रेजी उच्चारण भी खराब था। संस्कृत हो या अंग्रेजी——हमें ऐसे ही शिक्षक रखने चाहिए जो इन भाषाओंको ठीक-ठीक सिखा सकें। यदि ऐसा शिक्षक उपलब्ध न हो तो विषय सिखाना ही नहीं चाहिए। परन्तु

  1. मूल पत्रमें यहाँ अंग्रेजी 'गुडनेचर्ड' शब्द है
  2. मूलमें क्रमशः 'अनेबल एक्सेप्ट' और 'एप्रूव मैच कैन सेटिसफाई योर टेस्ट' है।
  3. मूलमें क्रमशः 'अनेबल एक्सेप्ट' और 'एप्रूव मैच कैन सेटिसफाई योर टेस्ट' है।
  4. गांधीजीने अंग्रेजी, संस्कृत और कताई इन तीन विषयोंमें उस संस्थाके सबसे कुशाग्रबुद्धि विद्यार्थीकी परीक्षा ली थी।