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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हमने तो सत्याग्रह छोड़ दिया है, इसलिए हम जनताको येन-केन रिझानेकी दृष्टिसे अपने कार्यक्रम बना लेते हैं। हमें अपनी शिक्षा प्रणालीमें सत्यका ही अनुसरण करना चाहिए। अब मैं चरखेके बारेमें आप लोगोंकी जो धारणा है उसमें किंचित् परिवर्तन करनेका सुझाव देना चाहता हूँ। आप लोग अनेक उद्योगोंकी तालीम देते हैं। आपने चरखेको अपने उन अनेक उद्योगोंमें से एकके रूपमें स्थान दिया है। परन्तु चरखा तो एक अद्वितीय उद्योग है। इसलिए उसको अनेक चीजोंमें से एक मान लेना न तो शोभाजनक है और न व्यवहारिक। चरखा अन्य उद्योगोंका सजातीय उद्योग नहीं है——चरखेका तो अपना अनोखा स्थान है। उद्योग तो आजीविकाके निमित्त सिखाए जाते हैं। यदि चरखा जीविकाके लिए सिखाया जा रहा है तो उसका स्थान कनिष्ठ हो जायेगा। तब वह दूसरे धन्धों जैसा ही एक धन्धा बन जाता है। और उस हालतमें उसकी तालीम न दी जाये तो भी काम चल सकता है। मुझे एक अनाथाश्रममें ले जाया गया था। वहाँ मुझे बताया गया कि वे लोग कताईका काम भी शुरू करनेका इरादा रखते हैं। मैंने कहा कि आपसे यह न होगा। क्योंकि आप तो अनेक उद्योग सिखानेके इच्छुक हैं। मैं इस मनोवृत्तिको व्यभिचार मानता हूँ। हमारे जीवनमें से एकनिष्ठता विदा हो गई है। सच्चा ब्रह्मचारी तो वही है जो एकनिष्ठ हो और ब्रह्मनिष्ठ हो। आप यदि चरखेको स्थान देना ही चाहते हैं तो उसका स्थान निराला ही होना चाहिए। हमारी राष्ट्रीय संस्थाओंकी विशेषता यह होनी चाहिए कि हम चरखा चलानेको महायज्ञ मानें और जिस प्रकार महायज्ञकी तैयारी करते हैं उसी तरह इसकी भी तैयारी करें। चरखेके प्रचारके लिए अंग्रेजीके ज्ञानकी आवश्यकता कहाँ पड़ती है, चरखेको 'गीता' से कितना समर्थन मिलता है, बढ़ई और लुहारका काम सीख लेनेपर चरखेमें कितना सुधार किया जा सकता है——इन सब बातोंपर आपको विचार करना चाहिए। क्या आप जानते हैं कि हमारे यहाँ आज एक भी ऐसी संस्था नहीं है जिसमें हमारी जरूरतके योग्य तकुए पर्याप्त संख्यामें मिल सकते हों। एक भी संस्थामें चरखेका अध्ययन शास्त्रीय पद्धतिसे नहीं किया जा रहा है। आप यह विशेषता प्राप्त कीजिये। आपका कारीगर यह सोचे कि वह आदर्श चरखा कैसे बना सकता है। उसे आदर्श चरखेके पहियेकी परिधि, वजन, रफ्तार, चमरखोंकी स्थिति इत्यादि बातें पूर्ण रूपसे जाननेका प्रयत्न करना चाहिए। आपका बढ़ई अच्छे किवाड़ या सन्दूक बनानेकी बात न सोचे; उसे तो अच्छेसे-अच्छे चरखे बनानेका इरादा रखना चाहिए। आपके अध्ययनका केन्द्र चरखा ही हो। आप चरखेको धार्मिक और पारमार्थिक दृष्टिसे देखें, इसके शास्त्रको जानकर इसका प्रचार करनेके लिए तैयार हो जायें। क्योंकि आप लोग यहाँ समाजके सेवक बननेकी तैयारी कर रहे हैं।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २० -२-१९२७