पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 34.pdf/१०२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जहाँतक नगरपालिकासे अनुदान लेनेकी बात है, उसे स्वीकार करनेमें, बल्कि उसकी मांग करनेमें भी, कोई हिचकिचाहट नहीं होगी ।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी (एस० एन० १४६१८ ) की माइक्रोफिल्मसे ।

५६. नवजीवन' देवनागरी में

मैं पाठकोंका ध्यान निम्नलिखित पत्रकी ओर आकर्षित करता हूँ :[१]

यह पत्र मुझे एक सज्जनकी ओरसे फरवरीके अन्त में मिला था । मैंने उसे यह सोचकर रख छोड़ा था कि समय आनेपर उसे प्रकाशित करूँगा । इस बीच, मैं बीमार पड़ गया, इसलिए ज्यादा देर हो गई।

पत्रका हेतु स्तुत्य है । मेरी राय है कि हिन्दुस्तानकी समस्त भाषाएँ देवनागरी लिपिमें लिखी जानी चाहिए। द्रविड़ भाषाओं और उर्दूको में अपवादरूप नहीं मानता लेकिन इसे अमल में लानेमें कठिनाइयाँ अवश्य देखता हूँ । जबतक हिन्दुओं और मुसल- मानोंमें वैरभाव है तबतक कोई मुसलमान देवनागरी लिपिमें उर्दू नहीं लिखेगा । मैं फारसी लिपिके त्यागका सुझाव नहीं देता परन्तु मेरा खयाल है कि सामान्य उर्दू पुस्तकें देवनागरीमें लिखी जानी चाहिए। लेकिन फिलहाल तो यह खयाल ही रहेगा । अबलत्ता, हिन्दू-मुसलमानोंमें ऐक्य स्थापित हो, उससे पहले यदि गुजरात, बंगाल आदि पहल करना चाहें तो कर सकते हैं ।

समस्त स्तुत्य कार्य एक ही व्यक्तिके हाथों नहीं होते। वह यदि उन्हें करनेकी कोशिश करता भी है तो केवल उपहासका पात्र बनता है । इसलिए ये कार्य तभी हो सकते हैं जब उनमें से हरएकको लोग अलग-अलग अपनायें और पागल की तरह उसके पीछे जुटे रहें ।

लेकिन 'नवजीवन 'के पाठक मुझसे उपर्युक्त पत्र लेखकके एक सुझावपर अवश्य अमल करवा सकते हैं। यदि 'नवजीवन 'के अधिकांश पाठक 'नवजीवन' देवनागरी लिपिमें पसन्द करें तो मैं अपने साथियोंसे तुरन्त उसे देवनागरीमें प्रकाशित करनेकी चर्चा करूँ । पाठकोंकी राय जाने बिना पहल करनेकी मुझमें हिम्मत नहीं है । एक लिपि का प्रचार करनेकी अपेक्षा जिन प्रश्नोंपर मैंने वर्षो विचार किया है और जिन प्रश्नोंको मैं अत्यन्त महत्त्वपूर्ण मानता हूँ, उनके प्रचारकी बातको में बहुत ज्यादा जरूरी मानता हूँ । 'नवजीवन'ने अनेक साहस किये हैं लेकिन वे सब बुनियादी सिद्धान्तोंके लिए ही किये हैं। देवनागरी लिपिके लिए में 'नवजीवन' के प्रचारको हानि पहुँचानेका खतरा मोल नहीं ले सकता ।

  1. पत्रका अनुवाद यहां नहीं दिया जा रहा है। पत्र लेखकका सुझाव था कि गांधीजी उत्तर भारतकी सभी भाषाओंके लिए देवनागरी लिपि अपना लेनेका समर्थन करें तथा गुजराती नवजीवन देवनागरी लिपिमें ही प्रकाशित करें ।