में ही निहित है। भाई अमृतलाल सेठका पत्र में इस आशासे प्रकाशित कर रहा हूँ[१] कि अन्य डॉक्टर, वैद्य और हकीम भी ऐसी सेवावृत्तिका अनुकरण करेंगे।
[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, २६-६-१९२७
५८. पत्र : एन० आर० मलकानीको
बंगलोर
२६ जून,१९२७
प्रिय मलकानी,
तुम्हारे पत्रने[२] मेरे मर्मको भेद दिया। महाविद्यालयका क्या होता है, इसकी मुझे कोई परवाह नहीं, लेकिन किसी व्यक्तिका क्या होता है, इसकी निश्चय ही मुझे बहुत फिक्र रहती है । मैंने तो तुम्हें नेक, दृढ़ और कठिनसे कठिन परिस्थितियोंमें भी अडिग रहनेवाला व्यक्ति समझा था । तुम्हें तोला गया तो तुम कम उतरे। ऐसी अशोभनीय जल्दबाजी में विद्यापीठ छोड़नेका कोई भी कारण समझमें नहीं आ सकता । थडानीके[३] व्यवहारसे भी मुझे दुःख हुआ । नेकी बरतने की जल्दबाजी में वे सभ्यजनोचित सामान्य शिष्टाचार दिखाना भी भूल गये ।
यह पत्र चाहो तो उन्हें भी दिखा दो । भगवान् तुम्हारा और मेरा कल्याण करे ।
तुम्हारा,
बापू
अंग्रेजी (जी० एन० ८७५) और एस० एन० १२५९९ की फोटो नकलसे ।
पत्र : आश्रमकी बहनोंको
रविवारकी रात, ज्येष्ठ वदी १२ [२६ जून,१९२७][४]
प्यारी बहनो,
तुम्हारा पत्र और हाजरी-पत्रक मिल गये । हाजरी-पत्रक मुझे भेजती ही रहना । उससे मुझे बहुत-सी बातें जाननेको मिलती हैं ।
मणिबनसे काफी समाचार पा सका हूँ । भण्डारका काम तो निर्विघ्न पूरा करना। आश्रमको हम कुटुम्ब मानते हैं, और उसे कुटुम्ब मानकर सारे देशको और