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एक पत्र

उसके द्वारा तमाम दुनियाको परिवार समझनेका सबक सीखना चाहते हैं । इसलिए जैसे कुटुम्बकी जिम्मेदारी लोग मिल-जुलकर किसी तरह निभा लेते हैं, उसी तरह भण्डारके बारेमें करना ।

गो-सेवाकी या मेरी और किसी बातसे तुम्हें डरना नहीं चाहिए। मैं तो जो मुझे सूझता है सो लिखता रहता हूँ, ताकि उसमें से जितना तुम्हें रुचे और जितना तुमसे हो सकता हो उतना तुम अवसर आते ही करने लगो ।

वालजीभाईकी माताकी-सी[१] मौत कोई पुण्यशाली ही पायेगा । धन्य है वह पुत्र, धन्य है वह माता और धन्य है वह आश्रम जिसमें ऐसी मृत्यु हुई। इस समय ब्रजलाल- भाईकी[२] पवित्र मृत्यु भी याद आ रही है ।

बापूके आशीर्वाद


गुजराती (जी० एन० ३६५५ ) की फोटो - नकलसे ।

६०. एक पत्र

[२७ जून,१९२७ के पूर्व][३]

जैसे भूतकालका विचार करना निरर्थक है वैसे ही भविष्यके बारेमें सोचना निरर्थक है । 'मेरे लिए तो एक ही कदम पर्याप्त है', यह किसी अनुभवीकी उक्ति है । हम भविष्यको जानकर करेंगे भी क्या ? अथवा हम भूत और भविष्य दोनोंको वर्तमान में ही समाविष्ट क्यों न मानें ? वर्तमान या भूतकाल में ही तो भविष्य निहित है । और जब हमारी आँखोंके आगे हर क्षण परिवर्तन होता ही रहता है तब सुदूर भविष्यका विचार करना तो हवाई किले बनाने जैसा है और हवाई किले तो मूर्ख ही बनाते हैं। वर्तमान यानी प्रस्तुत क्षणमें हमारा कर्त्तव्य । यदि हम अपने वर्तमान कर्त्तव्यको जानकर उसे पूरा करने में अपनी पूरी शक्ति लगा दें तो यह माना जायेगा कि हमने महान् पुरुषार्थ किया है । दुःख मात्र भविष्य के काल्पनिक घोड़े दौड़ाने और भूतकालका रोना रोनेसे उत्पन्न होता है । अतः तात्कालिक कर्त्तव्यको निभानेवालेका न तो पुनर्जन्म होता है और न मृत्यु |

[ गुजरातीसे ]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरी ।

सौजन्य : नारायण देसाई

  1. वालजीभाईकी माताने आश्रम से शहर जाते हुए नदी पार करके ठीक श्मशानमें वालजीभाईकी गोदमें ही प्राण त्यागे थे।
  2. ब्रजलालभाई कुएमें से घड़ा निकालते समय डूब गये थे ।
  3. साधन-सूत्र में यह पत्र २१ जूनके बाद तथा २७ जूनके पहले रखा गया है।