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पत्र : टी० आदिनारायण चेट्टियारको

अगर हम खादी और चरखेको अपनी प्रतिष्ठाके प्रतिकूल और ध्यान न देने योग्य मानें तो खतरा है कि भारत माता भी हमें ध्यान देने योग्य न मानेंगी।

[ अंग्रेजीसे ]

हिन्दू, १-७-१९२७

८०. पत्र : पी० आर० सुब्रह्मण्य शास्त्रीको

कुमार पार्क,बंगलोर

३० जून,१९२७

प्रिय भाई,

श्रीयुत राजगोपालाचारीने मुझे आपका इसी २९ तारीखका पत्र दिखाया । मैं अभी इतना अच्छा नहीं हो पाया हूँ कि लोगोंसे मिलकर उनके साथ लम्बी बातचीत कर सकूं। इसलिए वैसे तो अगर आप आना चाहें किसी भी दिन ४ और ५ के बीच आ सकते हैं, लेकिन मैं आपसे कोई लम्बी बातचीत नहीं कर पाऊँगा । यदि आपके पास कहनेको कुछ विशेष हो तो मेरा सुझाव यह है कि आप उसे एक साधारण कागजके एक ओर यथासम्भव अधिकसे-अधिक संक्षेपमें लिखकर मुझे भेज दें ।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत पी० आर० सुब्रह्मण्य शास्त्री,

५५, मल्लेश्वरम

बंगलोर

अंग्रेजी (एस० एन० १४१७७) की फोटो नकलसे ।

८१. पत्र : टी० आदिनारायण चेट्टियारको[१]

कुमार पार्क,बंगलोर

१ जुलाई,१९२७

प्रिय भाई,

मुझसे लौटती डाकसे उत्तर भेजनेकी अपेक्षा करना तो बड़ी भयानक बात है । यह संयोग ही है कि मैं आपके इस पत्रका उत्तर उसके मिलते ही दे पा रहा हूँ ।

मुझे पूरी आशा है कि आपने अक्षत - कौमार्य विधवाओंका पुनर्विवाह और वय- प्राप्तिके बाद ही लड़कियोंका विवाह करनेके जिन प्रस्तावोंका, उल्लेख किया है, उनके

  1. यह पत्र २ जुलाईको सेलममें प्रारम्भ होनेवाले “आर्य वैश्य सम्मेलन " के लिए सन्देशके रूपमें भेजा गया था।