पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 34.pdf/१२७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

८३. पत्र : हरीन्द्रनाथ चट्टोपाध्यायको

कुमार पार्क,बंगलोर

१ जुलाई,१९२७

प्रिय भाई,

आपका पत्र मिला । मैं १९२८ के जून महीनेके अन्तकी प्रतीक्षा करूँगा । आपकी नजर में जो बहन है, उसके बारेमें तो आपने मुझे कुछ बताया ही नहीं है। इसलिए मैं केवल आम जानकारी ही दे सकता हूँ। कह सकते हैं कि आश्रम एक छोटा-मोटा कारखाना ही है, स्त्री-पुरुष सभी कोई-न-कोई कार्य करनेमें व्यस्त रहते हैं। उनकी सारी प्रवृत्तियाँ मुख्यतः ओटाई-धुनाई, कताई और बुनाईपर केन्द्रित हैं, और स्त्री-पुरुष, लड़के-लड़कियाँ सभी इन कार्योंमें हाथ बँटाते हैं । इसमें सन्देह नहीं कि आश्रम में ठीक ढंगका एक स्कूल भी है, जहाँ किताबी शिक्षा दी जाती है । लेकिन किताबी शिक्षाके साथ-साथ व्यावसायिक शिक्षाकी उपेक्षा नहीं की जाती । इसलिए कोई यह भी सोच सकता है कि वहाँ किताबी शिक्षा व्यावसायिक शिक्षाके सामने गौण है । ऐसा कहना ठीक ही होगा कि अंग्रेजी जबरन् पढ़ाई जाती है । वहाँ हम अंग्रेजीके अध्यापनको बढ़ावा नहीं देते, और अंग्रेजी पढ़ानेसे पहले संस्कृत और हिन्दीका ज्ञान करानेके नियमका न्यूनाधिक पालन किया जाता है । इसलिए अगर यह बहन हिन्दी न जानती हो, या यदि वह सब-कुछ अंग्रेजीके माध्यमसे ही करना चाहती हो अथवा, उसे सिर्फ पढ़ने-लिखनेसे ही वास्ता हो तो आश्रम में तो उसकी स्थिति पानीसे दूर मछलीकी तरह होगी । अब अगर आप आश्रमके बारेमें विस्तारसे जानना चाहें तो मुझे लिख भेजें। मैं आपका पत्र उत्तरके लिए सही व्यक्तिको दे दूंगा ।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी (एस० एन० १२७७५ ) की फोटो - नकलसे ।