पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 34.pdf/१२८

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८४.पत्र : जे° डब्लू° पेटावेलकों

कुमार पार्क,बंगलोर

१ जुलाई,१९२७

प्रिय भाई,

आपके दो पत्र मिले। क्या यह मजेदार बात नहींकी हालांकि दोनों पत्र काफी लम्बे हैं, लेकिन मैंने जो सवाल[१] रखा है उसके बरेमे उनमे सीधे तरीकेसे कुछ नही कहा गया है ? बेल्जियम क्या-क्या हो रहा है, स्विटजरलैंड में क्या क्या हो रहा है , इसके बारेमें बताना तो आपके लिए निश्चय ही बहुत आसान है। मगर आप लिखने के अलावा और क्या खास 'काम' कर रहे हैं ?

मैं एक सवाल और पूछता हूँ । मेरे पास लगभग ८० एकड़ जमीन है, जिसपर हम लगभग २०० व्यक्ति, स्त्री-पुरुष और बच्चे और इसलिए बच्चोंके माता-पिता भी रह रहे हैं । हम थोड़ी-बहुत खेती करते हैं और दूध वगैरहसे सम्बन्धित काम भी करते हैं । अब आप ही बताइए कि आपकी योजनाके अनुसार हमें क्या करना चाहिएc?

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी (एस० एन० १४१७८) की फोटो - नकलसे ।

८५. पत्र : बी० एफ० भरूचाको[२]

कुमार पार्क,बंगलोर

[२ जुलाई, १९२७ के पूर्व[३]]

नागपुर जाकर भी तुम क्या देखोगे ? तुम्हें यह बताना तो आवश्यक नहीं है कि सत्याग्रही शस्त्रास्त्र अधिनियमको नहीं तोड़ सकता । आरम्भसे ही सविनय अवज्ञाका मतलब ऐसे कानूनों को तोड़ना रहा है जो नीति-विरुद्ध हैं । इस तरह जकाती कानूनोंको तोड़ा जा सकता है । जिन कानूनों द्वारा चोरी आदिको निषिद्ध किया गया है, उन्हें नहीं तोड़ा जा सकता। इसी तरह, जो व्यक्ति अहिंसात्मक संघर्ष चलाता है वह गिरफ्तार होनेके अथवा किसी भी अन्य उद्देश्यसे अपने पास तलवार या बन्दूक नहीं रख सकता । लखनऊमें, जहाँ मौलाना मुहम्मद अली और मैं साथ-साथ थे, हमने स्वयं- सेवकोंको अपने-अपने हाथोंमें नंगी तलवारें लिये हुए देखा, लेकिन उनसे तलवारें रखवा दीं । बेजवाड़ा में मौलाना मुहम्मद अली और मैंने स्वयंसेवकोंको, उन्होंने जो लम्बी-

  1. देखिए “ पत्र : जे० डब्ल्यू० पेटावेलको ” २३-६-१९२७।
  2. यह गुजराती पत्रका एक अंश है; जो मूल रूपमें उपलब्ध नहीं है। देखिए " सत्याग्रहकी सीमाएँ", १४-७-१९२७
  3. श्री भरूचाने यह पत्र नागपुर नगर कांग्रेस कमेटीकी २ जुलाईकी आपात बैठकमें पढ़ा था ।