पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 34.pdf/१३

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भूमिका

इस खण्डमें तीन महीनेकी - अर्थात् १६ जूनसे लेकर १५ सितम्बर, १९२७ तक- की -सामग्री दी गई है। काफी लम्बे अर्सेतक नन्दी पहाड़ीपर रहने के बाद अब गांधीजी बंगलोर आ गये थे और जून महीना समाप्त होते-न-होते उन्होंने मैसूरका दौरा भी शुरू कर दिया था। लेकिन अपने स्वास्थ्यका ध्यान रखते हुए वे दौरेका कार्यक्रम ऐसा रखते थे जिससे उसे अधिक श्रमके बिना सम्पन्न किया जा सके । मैसूर राज्यकी प्रगति तथा वहाँके सौहार्दपूर्ण वातावरणसे प्रसन्न होकर बंगलोरसे विदा होते समय अपने भाषण में उन्होंने कहा : "जो ज्यादा देते हैं, उनसे और ज्यादा देनेकी अपेक्षा की जाती है । इस राज्यमें मैंने इतनी अधिक मात्रामें अच्छाई देखी है कि मैं तो यहाँतक सोचने लगा हूँ कि यदि आप लोग और महाराजा साहब मिलकर चाहें तो मैसूरको रामराज्य बना सकते हैं ।" (पृष्ठ ४५३) ।

अगस्तके अन्तमें उन्होंने तमिलनाडका दौरा आरम्भ किया । ३ सितम्बरको वे मद्रास पहुँचे और वहांसे दक्षिणकी ओर बढ़ते हुए १५ सितम्बरको पूर्व तंजौर में मन्नारगुडि जा पहुँचे। इस दौरान उन्होंने अनेक भाषण दिये, जिनमें उन्होंने पूर्ववत् खादी और चरखा, अस्पृश्यता, बाल-विधवाओंकी समस्या तथा देवदासी प्रथाके सम्बन्धमें अपने विचार व्यक्त किये । कतिपय भाषणोंमें उन्होंने नगरपालिकाओंके सफाई सम्बन्धी कर्त्तव्यपर भी जोर दिया। विद्यार्थियोंके समक्ष बोलते हुए उन्होंने अकसर यह समझाया कि 'गीता 'का अध्ययन करना हिन्दुओंके लिए अत्यन्त आवश्यक है ।

उनके प्रत्येक शब्द, प्रत्येक कार्यके पीछे " एक धार्मिक चेतना, स्पष्ट धार्मिक उद्देश्य" होता था (पृष्ठ ४८७) । किन्तु साथ ही वे " कर्म और कर्मशीलतासे " अलग " कोई भी आध्यात्मिक या नैतिक मूल्य " स्वीकार ही नहीं करते थे (पृष्ठ ४८८) । इसी प्रकार जो धर्म " अर्थशास्त्रीय आचरणके रूपमें प्रस्तुत किये जाने योग्य" नहीं है, उसे उन्होंने व्यर्थ माना और जो अर्थशास्त्र " धार्मिक या आध्यात्मिक आचरणके रूपमें प्रस्तुत किये जाने योग्य" नहीं है, उसे उन्होंने त्याज्य बताया ( पृष्ठ ४८९) । स्वर्गीय चित्तरंजन दासकी गहन आध्यात्मिकताके लिए उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उन्होंने कहा : " प्रत्येक भारतीयके जीवन में एक ऐसा संमय अवश्य आता है जब वह निरे राजनीतिक संघर्षसे ऊब जाता है और. . . हर चीजको आध्यात्मिक और जीवन्त रूपसे नैतिक बुनियादोंपर खड़ी करनेकी कोशिश करने लगता है" (पृष्ठ ५४३) । पूर्णता प्राप्त करनेके अपने अथक प्रयत्नके सम्बन्धमें कडलूरके युवक ईसाई संघमें बोलते हुए उन्होंने कहा : ". . . व्यक्तिके विकास और समूहके विकास में कोई अन्तर नहीं है, . . . इसलिए व्यक्तिके विकासकी सबसे पहली शर्त यह है कि उसमें अतीव विनम्रता हो" (पृष्ठ ५४९) । तदनुसार देशकी सेवा करने और बड़े- बड़े काम कर दिखानेकी इच्छा रखनेवाले विद्यार्थियों तथा युवकोंको उनकी सलाह यह थी कि " सबसे पहले अपनी ओर ध्यान दो, अपनेको सँवारकर सेवाके लिए उपयुक्त साधन बनाओ " ( पृष्ठ ५४९ ) । इस प्रक्रियाको हम तभी आरम्भ कर Gandhi Heritage Portal