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पत्र : जे० बी० पेटिटको

बिल्कुल स्पष्ट हैं । यदि श्री शास्त्रीका स्वास्थ्य बिगड़ जाता है अथवा उनपर आर्थिक कठिनाइयाँ आती हैं तो यह बहुत बुरी बात होगी। खुद में तो यह समझता हूँ कि इस मामलेमें भारत सरकार विशेष जरूरतोंको पूरा नहीं कर सकेगी। कोई गलत नजीर कायम करना ठीक नहीं होगा; फिर भी सफलताके लिए श्री शास्त्रीके पास इतनी पर्याप्त धनराशि होनी चाहिए कि वे स्थान-स्थानपर जा सकें और वहाँ उन्हें रहने ठहरनेके लिए अच्छी जगह मिल सके । भावी एजेंटोंको तीन-तीन स्थानोंपर आवासके प्रबन्धकी जरूरत नहीं रहेगी। लेकिन, श्री शास्त्रीको पहले-पहल रास्ता बनाना है और इसलिए उन्हें परस्पर-विरोधी तत्त्वोंके बीच मेल-जोल स्थापित करनेके लिए न केवल अपने पदका बल्कि अपने विशिष्ट वैयक्तिक गुणोंका भी उपयोग करना है । अतएव उनका अधिक ठोस कार्य तो वही होगा जिसे वे अपने पदकी हैसियतसे नहीं करेंगे। ऐसा कर सकनेके लिए उनके पास पैसा होना चाहिए । भारतके समान दक्षिण आफ्रिकामें भी एक स्थानसे दूसरा स्थान बहुत दूर पड़ता है। रेल-पथसे केपटाउन और डर्बनके वीचकी दूरी १,४०० मील है । इन दोनों नगरोंमें उनके पास रहनेके लिए अपनी जगह होनी चाहिए। यदि वे होटल में जाकर रहते हैं तो अधिकांश भारतीय, जो गरीब हैं, उनतक नहीं पहुंच पायेंगे ।

मैं नहीं समझता कि समाचारपत्रोंमें यह सब लिखना और पैसेके लिए सार्वजनिक अपील करना मुनासिब होगा । इसलिए एकमात्र उचित रास्ता यही रह जाता है कि साम्राज्यीय नागरिक संघ (इम्पीरियल सिटिजनशिप एसोसिएशन) एक मोटी रकम श्री शास्त्रीको सौंप दे। इसमें कोई देर नहीं की जानी चाहिए। मुझे इस बातके बारेमें तनिक भी सन्देह नहीं है कि साम्राज्यीय नागरिक संघ के कोष में से इस मदमें खर्च करना बिलकुल वाजिब होगा ।

मेरा सुझाव है कि २५,००० रुपये तुरन्त उनके नाम कर दिये जायें, जिन्हें वे व्यक्तिगत सुविधाके लिए जिस तरह आवश्यक समझें उस तरह खर्च करें। हम उनपर इस बात के लिए भरोसा रख सकते हैं कि वे इस रकमका विवेकके साथ उपयोग करेंगे और फाजिल पैसा लौटा देंगे।

पैसे जल्दी भेजे जा सकें, इसके लिए में इस पत्रकी एक प्रति समितिके सदस्योंको भेज रहा हूँ, जिन्हें मैं जानता हूँ और जो मेरे खयालसे इस विषयमें दिलचस्पी लेंगे।

हृदयसे आपका,

मो० क० गांधी

श्रीयुत जे० [ बी० ] पेटिट

साम्राज्यीय नागरिक संघ

बम्बई

अंग्रेजी (एस० एन० १२३६५ ) की फोटो- नकल से ।