पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 34.pdf/१७०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१३४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

चन्दा देनेके लिए निमन्त्रित करती आई हैं और अबतक सरकारी कर्मचारीगण भी इनमें चन्दा देते आये हैं। क्या इस प्रकार उन्होंने सरकारी कर्मचारियोंकी आचार- संहिताको भंग किया है ? ये सहायता समितियाँ कांग्रेस संगठनकी अभिन्न अंग थीं । और आज भी दलित वर्ग समितियाँ इसकी अभिन्न अंग हैं । इसलिए क्या इन्हें राजनीतिक संगठन मानना चाहिए ? कांग्रेस, कांग्रेस संगठन और अपनी प्रवृत्तियोंके अभिन्न अंगके रूपमें अस्पतालोंकी भी स्थापना कर सकती है । तब क्या इसी कारणसे अस्पताल राजनीतिक संगठन बन जायेंगे ? खादी इस समय कांग्रेसकी सदस्यताकी शर्तोंका एक अभिन्न अंग है । इसलिए क्या सरकारी नौकरोंके लिए खादी पहनना अपराध है ? क्या ऐसा नहीं हो सकता कि कांग्रेसके राजनीतिक, सामाजिक, नैतिक, आर्थिक, चिकित्सकीय आदि अलग-अलग विभाग हों, जिनमें से सभी इस संगठन के अभिन्न अंग होते हुए भी पूर्ण रूपसे स्वशासित और एक-दूसरेसे सर्वथा स्वतन्त्र हों ? हर कांग्रेसीको इस बातका दुःख है कि यद्यपि कांग्रेस तमाम राष्ट्रीय संस्थाओंमें सबसे प्रभावशाली और महत्त्वपूर्ण संस्था है, फिर भी अभीतक इसके पास इतने आदमी और पैसे नहीं हैं कि वह राष्ट्रके जीवन के हर क्षेत्रका संगठन कर सके । लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता जायेगा और इसको ठीक ढंगके आदमी और पैसे मिलते जायेंगे, वैसे-वैसे यह अपनी प्रवृत्तियोंका विस्तार राष्ट्रीय जीवन के हर क्षेत्रमें करती जायेगी । उस हालत में यह कहना हास्यास्पद होगा कि इसकी तमाम गैर-राजनीतिक प्रवृत्तियों में राजनीतिकी बू है और इसलिए ये सभी प्रवृत्तियाँ सरकारी कर्मचारियोंके लिए अवांछनीय हैं। और अगर सरकारने ऐसा बहिष्कार शुरू करनेकी हिम्मत की तो यह उसकी मौतका फरमान साबित होगा ।

मुझे यह ज्ञात है और इस बातका दुःख है कि कांग्रेसके उस ऊँचाईतक पहुँ- चनेमें अभी बहुत देर है । लेकिन, जिस दिन यह उस ऊँचाईतक पहुँच जायेगी उस दिन सरकारका अस्तित्व इसमें विलीन हो जायेगा, और फिर कांग्रेसके कार्य और प्रभावपर नाराज होनेवाला, उसका विरोध करनेवाला या उसमें हस्तक्षेप करनेवाला कोई नहीं रह जायेगा। सरकार अखिल भारतीय चरखा संघको -- अगर 'हिन्दू' में छपी जानकारी सही हो तो - राजनीतिक संगठन करार दे सकी है, इससे प्रकट होता है कि इस समय कांग्रेसका प्रभाव कम है, जनताकी आवाज में कोई बल नहीं है, और इसलिए सरकारको खुली छूट है कि वह चाहे जो और जितना भी अपमानजनक या हास्यास्पद आदेश जारी करे। मैं तो यही आशा कर सकता हूँ कि ऐसे साहसी सरकारी कर्मचारी अवश्य होंगे जो इस न्याय विरुद्ध कुत्सित आदेशकी अवहेलना करके- चरखा संघको खुलेआम सहायता देंगे, क्योंकि सरकारी आदेश चाहे जो हो, किन्तु मेरी नम्र सम्मतिमें यह पूर्णतः गैर-राजनीतिक संस्था है, और सच तो यह है कि कांग्रेसने उस प्रस्तावमें, जिसके द्वारा इस संघकी स्थापना की गई, बताये गये कारणों में स्पष्ट शब्दों में कह दिया था कि यह एक गैरराजनीतिक संस्था होगी और गैरराज- नीतिक ही बनी रहेगी। वह प्रस्ताव अखिल भारतीय चरखा संघके संविधानका हिस्सा है और नीचे में उसे शब्दशः उद्धृत कर रहा हूँ :