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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अपने कपड़े आप घोओ, अपना खाना खुद बनाओ और अपना सारा काम खुद करो । और मैं तुम लोगोंसे एक बात कहूँ ? इस समय तुम्हें देखकर मुझे लगता है कि तुम सब विदेशी हो । क्या तुम बता सकते हो, मुझे ऐसा क्यों लगता है ?

विद्यार्थियों में से सबसे होशियार विद्यार्थीने तत्काल उत्तर दिया : क्योंकि हम विदेशी वस्त्र पहने हुए हैं।

हाँ, यह बात बिलकुल सच है । कोई कारण नहीं कि तुममें से हरएक खादी क्यों न पहने। मैं तुमसे सच कहता हूँ कि तुमने इस समय जो टोपियां पहन रखी हैं, में तुम्हें एक चौथाई दामपर और इससे ज्यादा साफ-सुथरी टोपियाँ दे सकता हूँ । तुम्हारे बड़े-बूढ़े अथवा अध्यापकगण खादी नहीं पहनते, इससे तुम्हें विचलित नहीं होना चाहिए। तुम्हारे माता-पिता अथवा अन्य आदि कर्नाटक शराब पीते हैं, गोमांस अथवा मरे हुए पशुओंका मांस खाते हैं, इसीलिए तो तुम वैसा नहीं करोगे। इसके विपरीत, मुझे आशा है कि तुम इन सब चीजोंको छोड़ दोगे और अपने सुपरिन्टेन्डेन्टसे अनुरोध करोगे कि वे तुम्हें खादीके वस्त्र दें । तुम उनसे कहोगे कि अगर खादीके वस्त्र महँगे हैं तो हम अपनी कपड़ेकी जरूरत में कटौती करनेको खुशी-खुशी तैयार हैं । तुम्हें जानना चाहिए कि देशमें लाखों ऐसे बच्चे हैं, जिन्हें तुम्हारे समान शिक्षाकी सुविधा प्राप्त नहीं है, जिन्हें तुम्हारे समान जेबखर्च मिलना तो दूर, पूरा भोजन भी नसीब नहीं होता । तुम्हारे जेबखर्चसे उनके लिए वह भोजन खरीदा जा सकता है । में चाहता हूँ कि तुम लोग उन्हींकी खातिर खादी पहनो और चरखा चलाना सीखो । तुम लोग प्रदर्शनी में जाकर देखो कि वहाँ क्या कुछ तुम्हारे सीखने लायक है ।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, १४-७-१९२७

११६. पत्र : मीराबहनको

८ जुलाई,१९२७

चि० मीरा,

तुम्हारे पत्र मिल गये हैं। ऐसा लगता है कि उनमें कोई एक पत्र अब भी नहीं मिल पाया है । तुम्हारी ओरसे तार द्वारा और कोई समाचार नहीं आया इसे मैं इसी बातका सूचक समझता हूँ कि सब कुछ ठीक है ।

तुम जबतक रहना चाहो तबतक रहो और जबतक तुम्हारा स्वास्थ्य बिलकुल ठीक नहीं हो जाता, कमसे कम तबतक तो अवश्य रहो । स्वास्थ्यको हर हालत में बनाये रखना है ।

सस्नेह,

बापू

अंग्रेजी (सी० डब्ल्यू० ५२४६ ) से ।

सौजन्य : मीराबहन