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भाषण : आदि कर्नाटक विद्यार्थियोंके समक्ष

अपने लम्बे लेखके लिए तुमने माफी मांगी है। लेकिन यह तो, जैसा पश्चिमी देशोंमें होता है, जान-बूझकर गुनाह करके माफी माँगने जैसी बात हुई; एक तरहकी जबरदस्ती है। यदि लम्बा पत्र लिखने के लिए क्षमा माँगनेकी जरूरत हो तो फिर हम लम्बा पत्र लिखें ही क्यों ? लेकिन तुमने तो लिखा और माफी भी मांगी। आज- कल [ हर क्षेत्रमें ] पश्चिमकी तूती बोल रही है। इसलिए चूँकि इससे मेरे सत्याग्रह- पर कोई आंच नहीं आती में तुम्हारी जबरदस्ती के सामने झुककर तुम्हें माफी देता हूँ। अगर कष्ट पाओगे तो तुम्हें उसकी माफी नहीं मिलेगी, इतना ही नहीं, मुझे तुम्हारे खिलाफ सत्याग्रह भी करना पड़ेगा। यदि आवारीको तुम मेरा सन्देश पहुँचा सकते हो तो उसे कहला भेजना कि खाये-पिये और आनन्द करे। उसके जेल जानेसे मुझे बिलकुल भी दुःख नहीं हुआ है । मैं उसे बहादुर मानता हूँ लेकिन मैं यह भी जानता हूँ कि वह नादान है। जिस तरह उसकी जिदकी कोई सीमा नहीं है वैसे ही उसकी भलाईका भी पार नहीं है । उसकी नादानी और जिदको मैं सहन कर लेता हूँ और उसकी भलाई, बहादुरी और देशप्रेमका मैं स्तवन करता हूँ ।

[ गुजरातीसे ]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरी ।

सौजन्य : नारायण देसाई

भाषण : आदि कर्नाटक विद्यार्थियोंके समक्ष[१]

८ जुलाई,१९२७ के पुर्व

अभी पिछले दिनोंकी बात है कि श्रीयुत शंकरनारायण राव, आदि कर्नाटक लड़कोंके लिए बने बंगलोर राज्य छात्रावासके विद्यार्थियोंको कुमार पार्क लाये. . . [गांधीजीको बताया गया : ] "अब हमारी संस्थामें १४५ विद्यार्थी हैं, लेकिन हमारा इरादा इन लोगोंको जेबखर्चके रूपमें जो एक रुपया प्रतिमास दिया जाता है वह देना बन्द करके और विद्यार्थियों को भरती करने का है । मगर विद्यार्थी इस प्रस्तावका विरोध कर रहे हैं। " . . . जब गांधीजीसे उन लोगोंने सलाहके तौरपर दो शब्द कहने का अनुरोध किया तो उन्होंने तत्काल इसी बातपर अँगुली रखते हुए कहा :

मेरे बच्चो, मुझे यह जानकर दुःख हुआ कि तुम लोग अपनी सादगीको भूलते जा रहे हो और जेबखर्चको अपने भाइयोंके लिए छोड़ने में संकोच कर रहे हो । सच मानो, मेरे पिताने मुझे कभी जेबखर्च नहीं दिया और भारतके किसी भी भाग में मध्यवित्त परिवारोंके बच्चोंको तुम्हारे समान जेबखर्च नहीं मिलता। लेकिन राज्य तुम्हें आवास, खाने और शिक्षाको सुविधा इसलिए नहीं देता कि तुम आलसी बन जाओ तथा सादगी और आत्मनिर्भरताकी बातको भूल जाओ। तुम्हें चाहिए कि तुम

  1. यह भाषण बंगलोर में दिया गया था और महादेव देसाईके “साप्ताहिक पत्र " (वीकली लैटर ) से उद्धृत किया गया है।