पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 34.pdf/३२१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

२३२. पत्र : डॉ० बा० शि० मंजेको

कुमार पार्क,बंगलोर
३० जुलाई, १९२७

प्रिय डाक्टर मुंजे,

आपका वह पत्र पाकर मुझे तसल्ली हुई जिसमें आपने दुर्घटनाका पूरा हाल लिखा है । भगवान्‌का शुक्र है कि कोई स्थायी क्षति नहीं पहुँची है। आपको जो चोट लगी है, उससे आपके शरीरको आप सब लोग बाल-बाल बच गये !

कृपया आप अपने पौत्रसे कहिए कि वह बड़े भाग्य से तनिक भी चोट खाये बिना बच निकला है और अब इस सौभाग्यका उपयोग उसे देशके लिए कुछ बड़े काम करके करना चाहिए। उसे मन में ऐसा पक्का संकल्प कर लेना चाहिए कि उसको अपने पितामह और मुझ जैसे अपने वृद्ध समकालीन लोगोंकी अपेक्षा कुछ ज्यादा करके दिखाना है, और इस संकल्प के साथ उसे आजसे अपने-आपको देशकी सेवा के लिए अर्पित कर देनेकी तैयारीमें लग जाना चाहिए ।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी (एस० एन० १४२०२) की फोटो- नकलसे ।

२३३. पत्र : एकनाथ श्रीपाद पटवर्धनको

कुमार पार्क,बंगलोर
३० जुलाई, १९२७

प्रिय मित्र,

अपनी बीमारी और इधर-उधर आते-जाते रहने के कारण मैं बहुत दिनोंतक आपके पत्रका उत्तर नहीं दे पाया; इसके लिए क्षमा करें। यदि मैं ठीक होता और पहलेकी तरह काम करनेकी स्थिति में होता तो मैं आपकी कठिनाईको दूर करने के लिए अवश्य ही कुछ करता । लेकिन इस समय तो में सचमुच लाचार हूँ । जैसा कि आप जानते ही हैं, मैंने व्यवस्थाका लगभग सारा कार्य छोड़ दिया है। बस, सिर्फ पत्र-व्यवहार और सम्पादनका काम करता हूँ और जितना दौरा करना बिलकुल जरूरी है, उतना दौरा रुक-रुककर आराम से करता हूँ । जमनालालजी संघके कार्यकारी अध्यक्ष हैं और में चाहूँगा कि आप उनसे सम्पर्क करें और उन्हें अपनी बात समझायें ।

बीमार पड़ने से पहले मैंने जमनालालजीसे आपके पूरे मामले के बारेमें बातचीत की थी। हालांकि संघकी परिषद्को बैठकके लिए जमनालालजी अभी हाल ही में यहाँ आये थे, लेकिन मैंने बैठक की कार्यवाहियोंमें भाग नहीं लिया और न जमनालालजीसे