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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

व्यवस्थाके सम्बन्धमें क्या-कुछ किया जाये, इस विषयपर कोई बातचीत ही की । दरअसल मैंने बहुत पहलेसे ही सोच रखा था कि मैं आपके विद्यालय और आपकी कठिनाइयोंका अध्ययन करूँगा । लेकिन बीमार हो जानेके कारण में असमर्थ हो गया और फलतः यह और इस तरहकी अन्य योजनाएँ भी घपले में पड़ गईं। इसलिए में आशा करता हूँ कि आप मुझे क्षमा करेंगे ।

साथवाले कागज रजिस्ट्रीसे सोमवारको भेज दूँगा ।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत एकनाथ श्रीपाद पटवर्धन

प्रमुख
तिलक महाविद्यालय

महाल, नागपुर

अंग्रेजी (एस० एन० १९७९४ ) की माइक्रोफिल्मसे ।

२३४. पत्र : वी० वी० दास्तानेको

कुमार पार्क,बंगलोर
३० जुलाई, १९२७

प्रिय दास्ताने,

तुम्हारा पत्र मिला। मुझे दुःख है कि मैं तुमसे नहीं मिल सका। यदि मुझमें बीमार पड़ने से पहले-जैसी सामर्थ्य होती तो निस्सन्देह, में खादी सेवा में स्थान पानेके लिए उत्सुक एक भी व्यक्तिको सिर्फ इस कारणसे निराश न करता कि अब हमारे पास उनके लिए गुंजाइश नहीं है। लेकिन जमनालालजी और शंकरलालको तो अपनी क्षमता और आत्म-विश्वास के अनुसार ही सारी व्यवस्था करनी है। तुम्हें इसके पक्ष- विपक्ष के सम्बन्ध में उन्हीं से बातचीत करनी चाहिए। मैं भी बातचीत करूँगा लेकिन मैं तो जरा इत्मीनान और सुविधासे ही करूँगा । यह तो ठीक ही है कि यदि तुमसे बने तो तुम्हें कदापि आत्म-विश्वास नहीं खोना चाहिए। लेकिन यदि हम सचमुच असहाय हैं तो हमें बहादुर बनने का ढोंग नहीं करना चाहिए। सबसे बड़ी बात तो यही है कि हमें सच्चा होना चाहिए।

हृदयसे तुम्हारा,,

श्रीयुत वी० वी० दास्ताने

अ० भा० च० सं० (महाराष्ट्र शाखा )

पिम्पराला डाकघर

अंग्रेजी (एस० एन० १९७९५) को माइक्रोफिल्म से ।