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२५३. भारतीय जहाजरानी

सिन्धिया जहाजरानी कम्पनी (सिन्धिया स्टीम नैविगेशन कम्पनी) के नये जहाज 'जलबाला' के जलावतरणकी विधि श्रीयुत विट्ठलभाई पटेलके हाथों सम्पन्न हुई, लेकिन इससे किसी प्रकारके राष्ट्रीय गौरव अथवा आनन्दकी भावनाका संचार नहीं होता। यह तो हमें मात्र हमारी अवदशाका ही स्मरण दिलाती है । हमारे तुच्छ बेड़ेमें एक छोटा-सा जहाज और जुड़ जाने से क्या फर्क पड़ता है ? और तब तो हमारा दुःख और भी बढ़ जाता है जब हमें खयाल आता है कि हमारे व्यापारिक जहाजी बेड़ेको किसी भी क्षण ऐसे लड़ाकू बेड़ेका रूप दिया जा सकता है जिनका उपयोग खुद हमारी स्वतन्त्रता अथवा ऐसे अन्य राष्ट्रोंकी स्वतन्त्रताको कुचलनेके लिए किया जाये जिनके साथ भारतका कोई झगड़ा नहीं है, बल्कि जिनकी आकांक्षाओंके प्रति उसकी सम्पूर्ण सहानुभूति भी हो सकती है; उदाहरणके लिए चीनको ले सकते हैं। चीन द्वारा अपनी स्वतन्त्रताके लिए शस्त्र उठाने की हिम्मत करने पर उसे सजा देनेके लिए यदि सरकार किसी भी स्वदेशी कम्पनीके किसी भी जहाजमें अपनी सेनाको वहाँतक ले जानेके लिए उसका उपयोग करना चाहे तो इससे उसे रोकनेवाली कोई चीज नहीं है । इसलिए इस अवसरपर अगर विट्ठलभाई पटेलको, जो केन्द्रीय विधान सभा के अध्यक्ष होनेके बावजूद आजतक प्रबल देश-भक्त बने हुए हैं, भारतके व्यापारिक बेड़ेको जान-बूझकर नष्ट कर देनेके प्रयत्नोंका इतिहास स्मरण हो आया तो इसमें आश्चर्यकी कोई बात नहीं। उन्होंने श्रोताओंको बताया कि :

एक समय ऐसा था जब भारतीय जहाज-मालिकोंके उत्तम कोटिके जहाज -- जिनका निर्माण, संचालन और व्यवस्था सब भारतीय ही करते थे-- भारतके मूल्यवान उत्पादनोंको लेकर दूर-दूरके देशोंमें जाया करते थे ।. . . लेकिन, कुछ परिस्थितियोंके कारण भारतीयोंके लिए इस उद्यममें लगे रहना अत्यन्त कठिन हो गया और यह उद्योग समूल नष्ट हो गया तथा आगे चलकर भारतीयोंके लिए इस क्षेत्रमें अपनी विगत गरिमाको पुनः प्राप्त कर सकना बहुत मुश्किल हो गया गया ।

वक्ताने उक्त परिस्थितियोंके बारेमें कुछ बताना योग्य नहीं समझा, किन्तु उन्होंने आगे कहा :

यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि पिछले ५० वर्षोंमें भारतमें कुछ जहाजरानी कम्पनियाँ खोली भी गई, लेकिन भाड़ा-दरोंमें कमी करनेके तरीके तथा अन्य ऐसे उपायोंसे, जिनके बारेमें जितना कम कहा जाये उतना ही अच्छा है, इनके अस्तित्वको समाप्त कर दिया ।