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२७१. पत्र : मीराबहनको

७ अगस्त, १९२७

चि० मीरा,

इस बार तुम्हें ज्यादा नहीं लिख पाऊँगा, क्योंकि मेरे पास लिखनेका बहुत सारा काम पड़ा हुआ है। गुजरातकी बाढ़से उत्पन्न समस्या और मुलाकातियोंसे निबटने में ही मेरा सारा समय निकल जाता है ।

वालुंजकरने तुम्हें जो कुछ बताया है उसके बारेमें मैंने काकासाहबसे चर्चा की है । वे कहते हैं कि उनका मतलब यह तो बिलकुल नहीं था कि वे वालुंजकरके साथ मिलकर स्त्रियोंके लिए कोई आश्रम खोलकर उनके शिक्षणका काम करनेको तैयार और इच्छुक हैं। उन्हें यह कार्य प्रिय है; लेकिन अभी वे अपने-आपको उसके लिए तैयार नहीं मानते ।

सस्नेह,

बापू

[ पुनश्च : ]

तुम्हारा पत्र मिला। सोमवारका पत्र यथासमय डाकमें डाल दिया गया था । हो सकता है कि तुमने पत्रपर लिखी तारीखसे अनुमान लगाया हो कि वह सोमवारका नहीं था । इसे सोमवासरीय पत्र ही मानना चाहिए। इसपर तुम रविवारकी तारीख देखोगी, क्योंकि यह कल रातको लिखा गया था । आजकल में मौन लेने के बाद अक्सर रविवारकी ही रात में अगले दिनके लिए पत्र लिख दिया करता हूँ। ऐसा मैं इसलिए करता हूँ कि सोमवारको लगातार काम न करना पड़े। बेशक तुम्हें इतना नहीं पढ़ना चाहिए जिससे तुम्हारी आँखोंपर जोर पड़े।

बापू

अंग्रेजी (सी० डब्ल्यू० ५२५९) से ।

सौजन्य : मीराबहन