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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


यदि हमारे देशके सब लोग जो कात सकते हैं - और कौन नहीं कात सकता - मनमें इस अन्धे कतैयेकी-सी आस्था संजोकर कातें, तो हमारे देशका कैसा कायाकल्प हो जाये ! क्या हमारे मन में यह विश्वास, यह आस्था नहीं जग सकती कि हमारे काते एक-एक तारको “किसी ऐसे परिधान में स्थान मिलेगा, जो कालातीत होगा" ?

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २५-८-१९२७

३७१. पत्र : मीराबहनको

कुमार पार्क,बंगलोर

२६ अगस्त, १९२७

चि० मीरा,

तुम्हारे पत्र मिल गये। तुमको पत्र लिखनेका श्रम कहीं मेरे लिए बहुत ज्यादा न हो जाये ऐसी चिन्ता मत करो। मैं तभी लिखता हूँ जब लिखना बिलकुल जरूरी हो जाता है, और जो काम मेरे लिए जरूरी हो जाये उसे करनेमें मुझे हमेशा आनन्द मिलता है। यदि मैं कोई ऐसा शुद्ध और संवेदनशील उपकरण बन जाऊँ जो आसपास- की हर परिस्थितिकी संवेदना ग्रहण करने और उसके मुताबिक काम करने लगे, तो मैं लिखना और बोलना बन्द कर दूंगा और फिर भी मेरे विचार उन लोगोंके हृदयों- तक पहुँच सकेंगे जिनको मेरे मार्ग-दर्शन या मेरी सहायताकी जरूरत है। परन्तु उस अवस्थातक पहुँचने से पहलेतक तो मुझे कलम और वाणी-जैसे अपेक्षाकृत कम विश्वसनीय और अपूर्ण साधनोंका ही सहारा लेना पड़ेगा ।

मेरा अब भी यही खयाल है कि मासिक धर्मके दिनोंकी छूतके सवालको तुम बेकार ही इतना तूल दे रही हो। तुम इसको बिलकुल अनिवार्य क्यों कहती हो ? यदि तुम इस नियमका पालन करती हो तो वह विशुद्धतम प्रेमके कारण ही किया गया एक काम होगा। पॉल द्वारा रोमवासियोंके नाम लिखा गया चौदहवाँ पत्र[१] तो तुमने पढ़ा ही होगा। पॉल स्वयं शाकाहारी नहीं थे। उन्होंने अपने भक्तोंको लिखा था: "यदि तुम्हारे भाईको मांसाहारसे परहेज हो तो मांससे दूर रहो। मेरे सामने ग्रन्थ नहीं है, इसलिए हो सकता है कि शब्दोंमें कुछ अन्तर हो, लेकिन सार यही है कि यदि तुम अपनेको पृथक रखोगी तो इसलिए नहीं कि तुम स्वयंको किसी भी तरहसे अशुद्ध महसूस करती हो, बल्कि इसलिए कि तुम अपने आसपास के लोगों और एक अच्छे उद्देश्य से प्रेरित होकर इस चीज में विश्वास रखनेवाली महिलाओं- की भावनाका खयाल करती हो । पता नहीं, मैं अपना अर्थ पूरी तरह स्पष्ट कर पाया हूँ या नहीं। सारी बातका सार यह है कि कुछ काम अपने-आपमें अनैतिक नहीं

  1. ईसाके बलिदानके पश्चात् उनके शिष्य पोटर और पॉलने विभिन्न स्थानोंको जनताके नाम कुछ पत्र लिखे थे। ये पत्र न्यू टेस्टामेंट में शामिल है।