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पत्र :मीराबहनको

होते और हम उनको दूसरोंकी खातिर करते हैं और कुछ काम अपने-आपमें अनैतिक होते हैं और इसीलिए हम उनको किसी की खातिर नहीं करते और न हमें करने ही चाहिए। यदि स्वेच्छा से स्वीकार किया गया अलगावका यह नियम तुमको अनैतिक लगता है तो मुझे खुश करनेके लिए भी वह तुमको नहीं करना चाहिए और यदि वह अनैतिक न लगता हो तो तुम उसे अपने आसपास के लोगोंके खयालसे करते हुए उनको उस हृदतक अज्ञानी मानो तो उचित ही होगा । जहाँतक इसके सैद्धान्तिक पक्षकी बात है, मैं तुमसे सोलहों आने सहमत हूँ । कुमारीके लिए तो ऐसे नियमका कोई प्रश्न ही नहीं उठता। उसके लिए मासिक धर्म कोई बीमारी तो होती नहीं । उसे जब मासिक धर्म होता है, वह उसका अर्थ समझ लेती है। उसके काम बदल जाते हैं पर उसकी मनोवृत्ति तो नहीं बदल जाती। विवाहित स्त्रियाँ भी जब इस अवधिमें सावधानी रखने की जरूरत एक बार समझ लें तब उनके लिए नियमके तौरपर अलगाव बरतनेका कोई मतलब नहीं रह जाना चाहिए। मेरा खयाल है कि मैं तुमको बतला चुका हूँ कि खुद मैंने तो इस नियमको बा के मामलेमें भी नहीं माना । और जब मैंने सब चीजोंको स्पष्ट रूपसे समझ लिया तब मुझे इस नियमके पालनकी आवश्यकता कभी महसूस ही नहीं हुई। राधा और रुखी तो इस नियमका पालन नहीं ही करतीं और जहाँतक मेरी जानकारी है, दूसरी लड़कियाँ भी इसका पालन नहीं करतीं। अमीना भी नहीं मानती। गोमती बहन मानती हैं और सब लोग उनकी इच्छाका यहाँतक सम्मान करते हैं कि इसका पालन न करनेवाली स्त्रियाँ भी अपने मासिक धर्मके दिनों में गोमतोबहनके पास नहीं जातीं। इसलिए यदि इसका पालन करना तुमको कोई कठिन काम लगे तो तुमको इसका पालन करनेकी कोई जरूरत नहीं। परन्तु यदि तुम कठिनाई महसूस न करती होओ तो दूसरे लोगोंकी भावनाओंके खयालसे एक आनन्ददायक कर्त्तव्य के रूप में इसका पालन करो । लेकिन तुम्हारे लिए तो अब इसका कोई व्यावहारिक महत्त्व नहीं रह गया है क्योंकि अगले माहवारीके दिनोंमें तुम शायद वर्धामें होगी ही नहीं। और अगर मासिक धर्म होगा भी तो वहाँ रहते एक ही बार होगा। साबरमतीमें कोई नहीं चाहेगा कि तुम इसका पालन करो। अमीना किसीके भी खयालसे इसका पालन नहीं करती, गोमती- बहुनका खयाल भी नहीं करती, और न कोई उससे ऐसी अपेक्षा ही करता है । तुमसे तो और भी नहीं की जायेगी । यहाँतक कि जब गोमतीबहन वहाँ रहेंगी तो वे भी तुमसे इसकी अपेक्षा नहीं करेंगी। जहाँतक मुझे जानकारी है, उन्होंने उनके अपने ख्यालसे या अपनी उपस्थितिका ख्याल करके खुद कभी किसीसे इस नियमका पालन करनेको नहीं कहा। यदि अब भी बात पूरी तरह समझमें न आई हो तो तुम इसकी चर्चा करती रहना और तबतक तुमको जैसा भी उचित लगे करती रहना ।

अब व्याकरण और गणितके बारेमें । तुमने जो लिखा है उसे मैं समझता हूँ । परन्तु तुम्हें मैंने जो काम सौंपा है उसके लिए यह बिलकुल जरूरी है कि तुम्हें गणितका भी ज्ञान होना चाहिए और एक शास्त्रके रूप में तथा भाषाओंका ज्ञान प्राप्त करनेके