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३७२. पत्र : डॉ० मु० अ० अन्सारीको

कुमार पार्क, बंगलोर
२६ अगस्त, १९२७

प्रिय डॉ० अन्सारी,

आपका तार मिल गया था । उम्मीद है, आपको मेरा जवाब भी मिल गया होगा। आपने जो बयान[१] प्रकाशित करवाया है वह बेशक शुरूके मसविदेसे बेहतर है। लेकिन मुझे यह तो लग ही रहा है कि अगर आप इसे रोक लेते तो कहीं ज्यादा अच्छा रहता। लेकिन मैं इस बातको पूरी तरह समझता हूँ कि जब आपके अन्दर- की आवाज कुछ और कह रही थी तब आप वैसा नहीं कर सकते थे।

में इतने दिनोंतक अपने-आपको रोके रहा, पर लगा कि अब मुझे 'यंग इंडिया' में इसके बारेमें थोड़ा-कुछ लिखना ही चाहिए। अपने बयानकी एक नकल मैं आपको भेज रहा हूँ। अगर आप समझें कि प्रकाशित नहीं कराना चाहिए, तो एक तार भेजनेकी मेहरबानी कीजिए। यह खत आपको हदसे-हद सोमवारतक मिल जायेगा। अगर आप इस बयानकी ताईद न करनेका तार भेज देंगे तो मैं इसे रद कर दूंगा। अगर आपको मेरा खत मंगलवारसे पहले न मिल पाये, तो मेहरबानी करके अहमदाबादमें 'यंग इंडिया' के दफ्तरके मैनेजरके नाम सीधे तार भेज दीजिए कि टिप्पणी प्रकाशित न की जाये। मैं मैनेजरको हिदायत दे रहा हूँ कि टिप्पणीका छपना रोकनेके लिए आपका तार आने पर उसे रोक लें। मेरी अपनी राय[२] प्रकाशित करनेके बारेमें मुझे बस इतना ही कहना है ।

यह टिप्पणी प्रकाशित हो या न हो, मेरा तो खयाल यही है कि इसमें जो रास्ता सुझाया गया है, आपके लिए सिर्फ वही एक मुनासिब रास्ता है। हाँ, अगर आप बहुत गहराईसे महसूस करते हों कि कौंसिलोंमें जानेवालों को वहाँ ओहदे सँभालने ही चाहिए और दूसरी बातोंमें भी उनको उसी नीतिपर चलना चाहिए जो आपने अपने बयान में बतलाई है और अगर आपको लगता हो कि अध्यक्ष पद स्वीकार करने पर आपको अपनी उसी नीतिपर मुस्तैदीसे अमल करना चाहिए, तो फिर बात ही दूसरी है। मैं महसूस करता हूँ कि अगर आपको अपनी नीतिका खुलकर प्रचार करना है तो आप एक गैरजानिबदाराना रुख अख्तियार नहीं कर सकते ।

तीन-चार दिन पहले मोतीलालजीका एक लम्बा तार[३] मिला था। तब मैंने आपके बयानको देखते हुए सोचा था कि इस मुश्किलका सबसे अच्छा हल शायद यही

  1. डॉ० अन्सारीके १२ अगस्तके पत्रके अनुसार उन्होंने कौंसिलोंके सदस्योंको एक होकर काम करने और इस बातको साफ-साफ स्वीकार करके चलनेकी सलाह दी थी कि वे कौंसिलोंमें असहयोग नहीं, बल्कि सहयोग कर रहे हैं। (एस० एन० १२८७२)
  2. यह प्रकाशित नहीं की गईं।
  3. देखिए “तार : मोतीलाल नेहरूको”, २४-८-१९२७।