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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


रहेगा कि आप खुद अपनी तरफसे अध्यक्ष-पदसे छुट्टी ले लें। लेकिन अब मुझे लगता है कि हिन्दू-मुसलमान एकताकी जरूरतके बारेमें आपके खयालातसे यह बात मेल नहीं खाती; और आप ओहदेसे अलग न हों। लेकिन मेरी इतनी ही पक्की राय यह भी है कि अगर आप एकता पैदा करनेके लिए जी-जानसे कोशिश करना चाहते हैं तो आपको कौंसिलोंकी इस राजनीतिको बिलकुल भूल जाना चाहिए,हैं बिलकुल तटस्थताका रुख अख्तियार कर लेना चाहिए और एक तटस्थ सभापतिकी तरह कांग्रेस, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी और कार्यकारिणीकी कार्यवाही चलानी चाहिए, और राजनीतिक कार्यक्रम बनाने या उसे कोई शक्ल देनेकी कोई कोशिश नहीं करनी चाहिए। अगर आप मेरा सुझाव मंजूर करें तो मेरे खयालसे आपको एक छोटा-सा बयान जारी करना पड़ेगा, जिसमें आप यह साफ बता देंगे कि यद्यपि आप अपने बयान में रखी गई नीतिपर अब भी दृढ़ हैं, लेकिन आप अपनी उस रायको कांग्रेसपर थोपनेकी कोई कोशिश नहीं करेंगे और अपने कामका दायरा हिन्दू-मुसलमान एकता बढ़ानेतक ही महदूद रखेंगे ।

हृदयसे आपका,

डॉ० मु० अ० अन्सारी,
१,दरियागंज, दिल्ली

अंग्रेजी (एस० एन० १२८७४) की फोटो-नकलसे ।

३७३. पत्र : मोतीलाल नेहरूको

कुमार पार्क, बंगलोर
२६ अगस्त, १९२७

प्रिय मोतीलालजी,

आपका पत्र मिल गया था और तार भी । पत्रका उत्तर[१] मैंने कृष्णगिरिसे भेज दिया था। आशा है, वह यथासमय मिल गया होगा। मैसूरके भीतरी इलाकोंमें रहने और लगातार दौरोंके कारण पत्रोंके उत्तर देनेमें मैं काफी पिछड़ गया हूँ ।

अब मैंने तय कर ही लिया है कि डॉ० अन्सारीके बयान के बारे में एक छोटी-सी टिप्पणी प्रकाशित करा दूं। मैंने उनके चुनावकी जोरदार वकालत की थी, इसलिए मैंने सोचा कि इस मौकेपर मुझे बिलकुल चुप्पी नहीं साधनी चाहिए। मैं हवाका रुख देखता रहूँगा और जब-कभी मुझे लगेगा कि मेरे कुछ करने या लिखनेसे कुछ बननेवाला है, मैं करने या लिखने में हिचकिचाऊँगा नहीं ।

मैं अभीतक जवाहरलालके निर्वाचनके पक्षमें नहीं हूँ; मेरा मतलब डॉ० अन्सारीके पद छोड़ देनेके बादके निर्वाचन से है। बहुत सम्भव है कि वे आपके और मेरे सुझाये

  1. देखिए “तार : मोतीलाल नेहरूको", २४-८-१९२७ ।