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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

प्रशासन के काम करनेका ढंग भी बहुत कुछ देखा-समझा है। मैंने सर एम० विश्वेश्वरैयाके कौशल और उत्साहके दो महान् प्रतीक -- कृष्णराज सागर और भद्रावती लोहा कारखाना. - देखे तो मैं दंग रह गया । ( हर्ष-ध्वनि) समयकी तंगीके कारण मैंने अपने प्रतिनिधिके जरिये आपके शिवसमुद्रम्के बारेमें भी जानकारी प्राप्त की। आर्थिक प्रगतिको ओर आपके प्रयाणमें इन दो विशाल उपक्रमोंका निस्सन्देह बड़ा महत्त्व है । मैं जहाँ भी गया, मैंने अधिकारियों और जनताके बीच सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध पाये । आपके यहाँ हिन्दू-मुस्लिम झगड़े नहीं है। उत्तर भारत में होनेवाली शरारतोंका आप- पर कोई असर नहीं हुआ है। मैंने आपके यहाँ और भी कई अच्छी बातें पाई हैं । इन सभी अच्छाइयोंके लिए मैं महाराजा साहब और आपको हार्दिक बधाई देता हूँ। मैं इसे अपना सौभाग्य मानता हूँ कि महाराजाके कल्याणकारी शासनकी रजत जयंती- समारोहके अवसरपर में यहाँ उपस्थित रह सका और आपकी खुशियोंमें शामिल हो सका तथा अपनी आँखोंसे देख सका कि आप अपने महाराजा साहबका कितना हार्दिक सम्मान करते हैं ।

आपने जो प्रगति की है, वह अपने आपमें काफी बड़ी तो है, पर इससे सन्तुष्ट हो बैठना गलत होगा । मुझे तो लगता है कि यह प्रगति मध्यवर्गके लोगोंतक ही सीमित है, इसमें किसानोंकी ओर समुचित ध्यान नहीं दिया गया है। शेष भारतकी तरह मैसूरकी रीढ़ भी किसान ही हैं। मैसूर में मुझे लोगोंने हर जगह खादीके कामके लिए थैलियाँ भेंट की हैं। यह बतलाता है कि मैसूरके नागरिक चरखे और खादीके सन्देशमें आस्था रखते हैं। मैसूरके विभिन्न स्थानोंका दौरा करने से मुझे पूरा यकीन हो गया है कि यदि सरकार और जनता दोनों मिलकर बाकायदा चरखेका काम करें तो मैसूरका भविष्य बड़ा उज्ज्वल है। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि भद्रावती लोहा कारखाने-जैसे विशाल उपक्रमोंको खड़ा करने और उनको चलाने में जितने विशद संगठन और कुशल ज्ञानकी जरूरत है, चरखे और खादीके कामके लिए उससे कुछ कम विशद संगठन और कुशल ज्ञानकी आवश्यकता नहीं है । अन्तर है तो केवल मात्राका । और जिस प्रकार इन विशाल उपक्रमोंको चालू रखने के लिए सतत सतर्कता और कौशलकी जरूरत होती है, उसी प्रकार यदि चरखा आन्दोलनको भी सतत प्रयत्न और कुशल ज्ञान द्वारा निरन्तर पुष्ट नहीं किया जायेगा तो यह भी अस्त-व्यस्त हो जायेगा। इस विशाल आन्दोलनको कौशल और सतर्कताके अभावमें दम मत तोड़ने दीजिए। हाथ-कताईसे किसानोंकी आमदनीमें कमसे-कम बीस प्रतिशत वृद्धि हो जाती है और यह भी नाम मात्रकी इतनी पूंजीसे जो मैसूरके कुछ विशाल उपक्रमोंपर होनेवाले खर्चकी तुलनामें कुछ है ही नहीं। यदि आप चरखेका चलन आम बना दें, तो उसका लाभ गरीब-से-गरीब किसानोंतक पहुँचेगा। इससे आपके और किसानोंके बीच एक अटूट सम्बन्ध कायम हो जायेगा। साथ ही साल में निठल्ले- पनके कमसेकम चार महीनोंके लिए किसानोंको एक इज्जतका धन्धा मिल जायेगा । मुझे यह जानकर बड़ी प्रसन्नता हुई कि उद्योग और सहकारिता विभाग इस दिशा में प्रयत्नशील हैं। इसलिए कि चरखेसे बड़ा कोई उद्योग नहीं और जबतक चरखे और इससे