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भाषण : वेल्लूरके वूरीज कालेज में

प्रकट हो, और वह प्रकट होना ही चाहिए। मगर तुम्हारा बेचैन होना मोह है। वह त्याज्य है । एक सेवाकार्यको अधूरा छोड़कर दूसरा करने के लिए कब जाना चाहिए और कब जाना धर्म होगा, यह तो अलग प्रश्न है। संकटके समय हमने आश्रमको खाली कर दिया वह हमारा धर्म था। मगर जो लोग उसमें न जा सके, उन्हें बेचैन होने की जरूरत नहीं । अब भी समझमें न आया हो तो पूछ लेना।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (जी० एन० ३६६६) की फोटो-नकलसे ।

३८६. भेंट: एसोसिएटेड प्रेस ऑफ इंडिया के प्रतिनिधिको

बंगलोर
[२९ अगस्त, १९२७ ][१]

वाइसराय द्वारा एक सम्मेलन बुलाने के सुझावके बारेमें महात्मा गांधोके विचार जानने के लिए एसोसिएटेड प्रेस ऑफ इंडियाके प्रतिनिधिने उनसे भेंट की। महात्माजीने कहा कि वैसे तो हिन्दू-मुस्लिम समस्याको हल करनेके लिए सरकारी तौरपर उठाये गये कदमके प्रति मेरे मनमें बहुत उत्साह नहीं है, फिर भी इस मामलेमें जहाँसे भी सहयोग मिले, मैं उसका स्वागत करता हूँ।

[ अंग्रेजीसे ]

टिब्यून, ३१-८-१९२७

३८७. भाषण : वेल्लूरके वूरीज कालेज में[२]

[३० अगस्त, १९२७ ][३]

प्रिंसिपल साहब, विद्यार्थियों और मित्रो[४],

सबसे पहले तो मैं,आपके प्रिंसिपल साहब जिस पारिवारिक शोकसे सन्तप्त है[५], उसके लिए अपना हार्दिक दुःख प्रकट करना चाहूँगा । यहाँ आते ही मुझे यह दुःखद बात सुननेको मिली। प्रिंसिपल साहब, आपने न केवल इस समारोहका आयोजन आज अपने घरमें होने दिया, बल्कि इतने शोक सन्तप्त होनेपर भी आप स्वयं इस समारोह- में पधारे और इसकी अध्यक्षता भी कर रहे हैं, आपके इस अत्यन्त शालीन और

  1. यह विवरण इसी तारीखको जारी किया गया था।
  2. यह “ विद्यार्थी क्या कर सकते है ? ” ( व्हाट स्टुडेटस कैन डू) शीर्षकके अन्तर्गत इस प्रारम्भिक टिप्पणीके साथ प्रकाशित हुआ था : “ नीचे वेल्लूरके विद्यार्थियोंके समक्ष दिये गांधीजोके भाषणका शब्दशः विवरण छापा जा रहा है"
  3. और
  4. ४. हिन्दू, २-९-१९२७ से ।
  5. वूरीज कालेजके प्रिंसिपल श्री डी० बोअरके बच्चेकी मृत्यु हो गई थी।