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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कृपापूर्ण व्यवहारकी मैं सराहना करता हूँ; मैं आपसे अनुरोध करूंगा कि अपने इस दुःखमें आप मुझे भी अपना भागीदार मानें ।

आज तीसरे पहर मुझे जो मानपत्र भेंट किया गया है और खादीकोषके निमित्त जो थैली दी गई है, उसके लिए मैं आप सभी विद्यार्थियों और अन्य भाइयोंको धन्यवाद देता हूँ। मगर आपने मेरे प्रति जो व्यक्तिगत स्नेह प्रकट किया है और देशके गरीबोंके प्रति अपनत्वकी भावनाका जो परिचय दिया है, उससे अब मुझे कोई आश्चर्य नहीं होता, क्योंकि मैं इस सुन्दर देशके जिस किसी कोने में जाता हूँ, सर्वत्र मुझे यही चीज देखनेको मिलती है। मेरे लिए यह बड़े हर्षका विषय रहा है कि सारे भारतके विद्यार्थियोंके मनमें मेरे प्रति प्रेम है। अनेक कठिनाइयोंके बीच यह चीज मेरे लिए सान्त्वनाका एक कारण रही है। विद्यार्थियोंने मेरे सिरका बोझ बहुत हलका कर दिया है। लेकिन, यद्यपि यह ठीक है कि उन्होंने मेरे प्रति सर्वत्र प्रेम दरसाया है और गरीबोंके साथ अपनत्वकी भावनाका भी परिचय दिया है, फिर भी मैं अपने मनकी इस भावनाको नहीं दबा सकता कि उन्हें अभी बहुत कुछ करना शेष है। क्योंकि देशके भविष्यकी सारी आशाएँ तो आपपर ही टिकी हुई हैं । जब आप स्कूल-कालेजोंसे छूटेंगे तो इस देशके गरीब लोगोंकी रहनुमाई करनेके लिए आपको सार्वजनिक जीवन में प्रवेश करना पड़ेगा। इसलिए मैं चाहूँगा कि आपमें अपने दायित्वका बोध हो और इस दायित्व बोधका परिचय आप और भी अधिक स्पष्ट और व्यावहारिक रूपमें दें। यह ध्यान देने और साथ ही दुःखकी भी बात है कि अधिकांश विद्यार्थियोंके मनमें जहाँ विद्यार्थी-जीवनमें बड़ी-बड़ी उमंगें होती हैं, पढ़ाई खत्म करने के बाद ही उनकी सारी उमंगें समाप्त हो जाती हैं। उनमें से अधिकांश धन-सम्पत्तिकी चिन्तामें लग जाते हैं। निश्चय ही, व्यवस्थामें कहीं कोई दोष है। एक कारण तो स्पष्ट है। प्रत्येक शिक्षा शास्त्रीने, विद्यार्थियोंसे सम्बन्ध रखनेवाले हर व्यक्तिने यह महसूस किया है कि हमारी शिक्षा पद्धति दोषपूर्ण है। यह हमारे देशकी जरूरतोंको पूरा नहीं करती, देशके गरीब लोगोंकी जरूरतोंको तो निश्चय ही नहीं। जो शिक्षा दी जाती है उसके और घरेलू तथा ग्राम्य जीवनके बीच कोई संगति नहीं है। लेकिन, यह कोई ऐसा छोटा-मोटा सवाल तो है नहीं कि आप और हम इस तरहको किसी सभामें उसका हल निकाल सकें ।

तो हमें वस्तुस्थितिको स्वीकार करते हुए सोचना इस विषयपर है कि देशकी सेवा करनेके लिए विद्यार्थियोंको क्या करना चाहिए तथा हम क्या-कुछ कर सकते हैं। इसका जो उत्तर मुझे सूझता है और जो उन लोगोंको सूझता है जिन्हें इस बातकी चिन्ता है कि विद्यार्थी अपनी योग्यताका ठीक परिचय दें, वह यह है कि विद्यार्थियोंको आत्मनिरीक्षण करना चाहिए और अपने व्यक्तिगत चरित्रको सुदृढ़ बनानेकी ओर ध्यान देना चाहिए। व्यक्तिगत जीवनकी पवित्रता सच्ची शिक्षाकी अनिवार्य शर्त है। में हजारों विद्यार्थियोंसे मिलता हूँ। उनके साथ बराबर मेरा पत्र-व्यव- हार भी चलता रहता है। अपने पत्रोंमें वे मुझपर विश्वास करके अपने हृदयकी गुह्यतम भावनाओंको भी व्यक्त कर देते हैं। उनसे मिलने-जुलने और उनके पत्रोंसे मुझे