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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भविष्यमें तुम्हें अपने इस कार्य में यदि कोई दोष दिखाई दे तो तुम किसी दूसरे छोटे मकानके खाली होनेपर उसमें जा सकते हो। मतलब यह कि उस परिस्थिति में भी हमें डरका कोई कारण नहीं है। और फिर, यदि लीलाबहन इस जीवन की अभ्यस्त हो जायें और उन्हें गरीबी सघ जाये, तुम स्वयं इतने अलिप्त हो जाओ कि आसपासका वातावरण तुम्हें तनिक भी विचलित न कर सके तो तुम स्वयं ही इस मकानको छोड़कर दूसरेकी माँग करोगे । और अगर में यह देखूंगा कि तुम्हारे अथवा लीलाबह्नके जीवन में शिथिलता आ रही है तो बुजुर्ग और अभिभावक के नाते मैं तुमसे यह सब कहने में संकोच नहीं करूंगा। क्योंकि यदि में इसमें संकोच करूँगा तो स्वयं धर्मभ्रष्ट हो जाऊँगा । इस तरह तुम हर प्रकारसे सुरक्षित हो। मैं तुम्हारे पहले पत्रके उत्तर में ही यह सब लिख सकता था; मुझे यह सूझा भी था। लेकिन ऐसा करके तुम्हारे उपवासको इस तरह एकाएक रोकनेकी बात मुझे जँची नहीं । यह भी भय था कि उपवाससे पहले ऐसी दलील देनेसे तुम्हें आघात पहुँचेगा । इसीसे मैंने इसे मुल्तवी रखा। अब तुम ऐसी स्थितिमें हो कि मेरी दलीलको तटस्थ भावसे देख-परख सकते हो और स्वीकार कर सकते हो क्योंकि उपवास-रूपी बाधा अब दूर हो गई है। यह दलील सकारण है । यदि उपवास कर चुकनेके कारण तुम भ्रान्तिवश ऐसा खयाल करो कि नया मकान बनानेके औचित्यके सम्बन्धमें अब शंका करनेकी कोई जरूरत नहीं है तो यह ठीक नहीं। सच तो यह है कि हमें अपने प्रत्येक भोगके बारेमें शंकित रहना चाहिए, यही धर्म हैं; निश्शंक होना मूर्च्छाका लक्षण है । यदि हम भोगके सम्बन्ध में शंकित न रहें तो सम्पूर्ण त्याग करने में कभी समर्थ नहीं हो सकते । इसलिए मैंने तुम्हें चेतावनी दी है । तुम्हारे पत्रके अन्य अंशोंके बारेमें भी मुझे लिखना है। लेकिन फिलहाल इतना ही पर्याप्त है। और फिर जब मुझे समय मिलेगा तब दूसरे अंशोंके सम्बन्ध में चर्चा करूँगा। मेरा ख्याल है उसके बारेमें कोई जल्दी तो है नहीं । मुझे तुम जो कुछ लिखना चाहो सो निस्संकोच लिखना ।

मो० क० गांधी

गुजराती (एस० एन० १२१९४ ) की फोटो- नकलसे ।