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लंकाशायर गुट

लंकाशायर वाले उसे लंकाशायरके लिए मानते हैं। आयात- सूचीपर जरा एक नजर डालिए तो आपको इस बातकी सचाईका पूरा एहसास हो जायेगा । लंकाशायरसे होनेवाले आयातकी अन्य स्थानोंसे होनेवाले आयातसे कोई तुलना ही नहीं की जा सकती। ब्रिटिश साम्राज्यसे कुल मिलाकर जितना आयात होता है, उसका लगभग आधा सिर्फ लंकाशायरसे होता है । लंकाशायरका उत्कर्ष भारतके सबसे बड़े कुटीर उद्योगको धूल में मिलाकर हुआ है और वह टिका हुआ है भारतके करोड़ों असहाय मानवोंके शोषण के बलपर । देशी मिल-उद्योगको तो वास्तवमें ऐसा माना जाता है मानो इस क्षेत्र में अनधिकृत तौरपर घुसा हुआ व्यापारी है और अगर इसे लंकाशायरके हमें सभ्य तरीकेसे कुचलना सम्भव हो तो कोई भी बहाना बनाये बिना इसे कुचल दिया जाये । लंकाशायरके जबर्दस्त स्वार्थके आगे किसी प्रकारकी नैतिकता को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता। इस उद्योगका अस्तित्व लंकाशायर और भारत दोनोंके लिए हानिकर है । इसने भारतको दरिद्र बनाकर रख छोड़ा है तथा भारतकी दरिद्रता लंकाशायर के नैतिक दिवालियेपनकी निशानी है ।

भारतके मिल मालिकोंके सामने यह एक ऐसी बाधा है जिसका पार पाना लगभग अशक्य है । और इसके विरुद्ध खड़े होकर उन्हें अपना प्राप्य तबतक नहीं मिल सकता जबतक कि वे साहसपूर्वक जनता के हितको अपना हित मानकर और इस तरह उसके साथ मिलकर सरकारको संरक्षण देने पर विवश नहीं कर देते । देशको यह संरक्षण प्राप्त करनेका अधिकार है। अगर किसी देशको यह तय करनेका अधिकार है कि उसकी सीमाओंमें कौन लोग रहेंगे और किन लोगोंको उसके अस्तित्वके लिए हानि- कर होने के कारण निकाल देना चाहिए तो यह तय करनेका तो उसे और भी अधिक अधिकार है कि विदेशोंसे कौन-सी वस्तुएँ उसकी सीमामें आने दी जायें; और उसकी आबादी के लिए वे कौनसी हानिकर वस्तुएँ हैं जिनका आयात रोक दिया जाये ।

इस बात में किसी प्रकारका सन्देह नहीं हो सकता कि बाहरसे आयात की जानेवाली वस्तुओंमें कपड़े का आयात सबसे हानिकर है । मिल उद्योग भले ही कुछ समय- तक फूले-फले, तरह-तरह की पैंतरेबाजियों या अनुकूल घटना- चक्के कारण इसमें कुछ समयके लिए समृद्धि और उत्कर्ष भी दिखाई दे सकता है; लेकिन जबतक यह तमाम विदेशी कपड़े के खिलाफ प्रभावकारी संरक्षण प्राप्त नहीं कर लेता तबतक देर-सबेर इसका विनाश निश्चित है और यह भी तय है कि लोग जितना सोचते हैं, उससे बहुत पहले ही यह स्थिति आयेगी। किसी-न-किसी दिन जनसाधारणमें सच्ची और स्थायी जागृति आयेगी। हो सकता है, वह जागृति पागलपनसे भरी और अनुशासनहीन हो, लेकिन यह पागलपन भी सुसंगठित और सुनियोजित होगा । या कि ( जैसी मुझे उम्मीद है) हो सकता है, वह अनुशासित और अहिंसात्मक ढंगसे सुसंगठित हो । जिस दिन वह जागृति आयेगी, उस दिन देशी मिल-उद्योग, अगर जनता उसे अपना नहीं मान पाती है तो वह उसी आग की लपटोंमें पड़कर स्वाहा हो जायेगा जिसका ग्रास विदेशी कपड़ोंको होना ही है । इसलिए यही वह उपयुक्त समय है जब मिल- मालिक खादीके हित में अपना हित देखने लगें और उसके पक्षमें खड़े होकर उसे संरक्षण