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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

देने के लिए अनिच्छुक सरकारको संरक्षण देनेपर विवश कर दें। अगर दोनोंके क्षेत्र निर्धारित कर दिये जायें और दोनों एक-दूसरेके क्षेत्रमें किसी प्रकारका हस्तक्षेप न करें तो अभी वर्षोंतक दोनोंके साथ-साथ फूलने-फलने की गुंजाइश है । और तब वे सरकारकी उदासीनता बल्कि छिपे विरोधके बावजूद फूल-फल सकेंगे। लेकिन इसकी प्रारम्भिक शर्त यह है कि मिल-मालिक बुद्धिमानीपूर्वक कुछ त्याग करें, उनमें आपस में एक जीवन्त और प्रबल सहयोग संगठन और अपने कार्यक्रमको पूरा करनेका फौलादी संकल्प हो ।

ऐसी अफवाह थी कि सरकारके निर्णयके उत्तरमें मिल मजदूरोंकी मजदूरी में कुछ कटौती करने की बात सोची जा रही है, लेकिन यह देखकर मुझे बड़ी खुशी हुई कि इस अफवाहका अधिकृत तौरपर खण्डन किया गया है। मजदूरी में कटौती करना आत्मघात साबित होता । इस समय जरूरत श्रमिकोंको रुष्ट करनेकी नहीं, बल्कि उनके हितको अपना हित समझकर उनके साथ मिलकर और उन्हें साझेदारों और एजेंटों- के ही समान मिलोंके मालिक मानकर चलनेकी है। अगर साझेदार पूँजी लगाते हैं तो श्रमिक भी अपना श्रम लगाकर उस पूँजीको वस्त्रका रूप देते हैं इसलिए मिल-मालिकों, मिल मजदूरों और जनताका संगठन एक ऐसा दुर्निवार संगठन होगा जिसकी उपेक्षा करने की हिम्मत सरकार कभी नहीं करेगी। क्या मिल-मालिक इस कार्यके लिए जैसी पर्याप्त दूरदर्शिता, साहस और देशभक्ति अपेक्षित है उसका परिचय देंगे ? रुपयेका मूल्य बढ़ाकर १ शिलिंग ६ पेंस कर देने के बारेमें ऐसा मत प्रकट किया गया था ( और वह बहुत हदतक सही था) कि यह इस भारी उद्योगपर किया गया एक प्रहार और लंकाशायरको दिया गया एक उपहार है। चुंगी निकायका फैसला इस उद्योगपर किया गया ऐसा ही एक दूसरा प्रहार है और इसीलिए वह लंकाशायरको दिया गया दूसरा उपहार है । अब मेरे मनमें जो सवाल उठ रहा है वह यह कि इस अन्तिम प्रहारसे मिल मालिक उचित कार्रवाई करनेके लिए प्रेरित होंगे अथवा नहीं । सिर्फ प्रार्थनापत्र देने या विधान सभामें प्रस्ताव पास करने से कुछ भी नहीं बनेगा । इस सबकी सफलताके लिए इसके पीछे सार्वजनिक कार्रवाईका बल मिलना आवश्यक है; और मेरी तुच्छ सम्मतिमें, मैंने इस सन्दर्भमें जो सार्वजनिक कार्रवाई सुझानेकी घृष्टता की है, उससे नरम किसी भी कार्रवाईकी बात सोचना सम्भव नहीं है ।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, २३-६-१९२७