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१५०. पत्र : मीराबहनको

७ नवम्बर, १९२७

चि० मीरा,

हालाँकि कुछ कहनेको नहीं है, लेकिन हर सोमवारको तुम्हें लिखनेकी अपनी आदतको मैं तोड़ना नहीं चाहता।

मैं मान रहा हूँ कि दुग्ध-शालाओंके बारेमें तुम जो पुस्तकें पढ़ रही हो, उनमें से नोट ले रही हो । अब जब तुम उसी काममें लग गई हो तो मैं चाहता हूँ कि तुम उस क्षेत्रमें विशेषज्ञ बन जाओ। अगर तुमसे सघ सके तो तुम्हें आँकड़ोंपर भी पूरा कमाल हासिल करना होगा। बस इतना ध्यान रहे कि इस चीजको लेकर या किसी चीजको लेकर अपनेको परेशान मत करना -- उतना ही करना जितना आसानीसे कर सको।

तुम छोटेलालसे सम्पर्क बढ़ाओ। उसे अपने अटपटे स्वभाव और अपनी निराश मनःस्थितिसे छुटकारा पाना ही चाहिए। उसका व्यक्तित्व अब खुलना चाहिए ।

पारनेरकरके बार-बार बीमार पड़नेके कारणका भी पता चलाओ । यदि उसे काफी काम करना है तो उसे स्वस्थ रहना चाहिए।

सस्नेह,

बापू

[ पुनश्च :]

समुद्र-यात्रा बड़ी आनन्ददायक है।

अंग्रेजी (सी० डब्ल्यू० ५२९२ ) से ।
सौजन्य : मीराबहन





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