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१५१. पत्र : बनारसीदास चतुर्वेदीको

७ नवम्बर, १९२७

भाई बनारसीदासजी,

आपके दो पत्र मीले थे परंतु मुसाफरीके कारण इससे आगे मैं उत्तर न लीख सका।

अब कुछ स्थायी काम ले लीया है उससे मुझे बहोत अच्छा लगता है।

गेरीसनकी जीवनी जो आश्रममें है उसको भेजनेका मैं आश्रममें लीखता हूं। उपयोग होनेके बाद आप वापिस भेज देंगे।

आपका,
मोहनदास

[ पुनश्च : ]

अफरीका जानेका छोड़ दीया उचित हुआ है ।

पण्डित बनारसीदास चतुर्वेदी
९१, अपर सरकुलर रोड
कलकत्ता'[१]

जी० एन० २५५८ की फोटो-नकलसे ।

१५२. पत्र : तुलसी मेहरको

कार्तिक शुक्ल १३ [७ नवम्बर, १९२७ ][२]

चि० तुलसी मेहर,

नव वर्षका तुम्हारा खत अभी पढ़ने पाया । लंका जाती हुई जहाजमें हम सब है। साथ काका साहेब भी हैं। तुमारा कार्य अच्छा चलता हुआ देखकर और तुमारी प्रसन्नता देखकर मुझे बड़ा आनन्द होता है। लंकामें कुछ दो हफ्ते होंगे। उसके बाद उत्कल और पीछे मद्रास और जानेवारीमें आश्रम । मैं आश्रममें दो दिन रह आया ।

  1. मूलमें पता अंग्रेजीमें लिखा था।
  2. लंकाकी यात्राके उल्लेखसे ।