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३१२. पत्र : आश्रमकी बहनोंको

मद्रास
सोमवार [ २६ दिसम्बर, १९२७ ]

[१]

प्यारी बहनो,

तुम्हारा पत्र मिला । असलमें मेरा इरादा तो आज ही यहाँसे रवाना होनेका था, किन्तु अब ऐसा लगता है कि कल, और नहीं तो बुधवारको यहाँसे अवश्य निकल जाऊँगा । अतः कहना चाहिए कि मैं जल्दी से जल्दी शनिवारको तुम लोगोंसे मिलूंगा ।

यह बात तो समझमें आती है कि आज तुममें से कोई उत्कल यात्रा पर जानेको तैयार नहीं हुई। किन्तु आखिर छुटकारा तो तभी मिलेगा जब बहुत-सी बहनें आश्रम से ही तैयार होकर निकलें ।

तुमने लिखा है कि तार लिखवानेमें भूल हुई है। किन्तु बात मेरी समझमें नहीं आई । अब तो जब हम लोग मिलें तभी समझाना ।

जो काम हमें प्रिय लगता है हम उसे करना कभी नहीं भूलते। मैंने भावुक स्त्री-पुरुषोंको मन्दिरोंमें अनेक प्रकारकी सेवा बहुत ही प्रेमपूर्वक करते देखा है। हम मानते हैं कि इस प्रकारकी सभी सेवाओंमें कताई-यज्ञका स्थान सबसे ऊपर है । इस बारेमें यदि किसी तरहकी शंका हो तो मुझसे अवश्य पूछ लेना ।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (सी० डब्ल्यू० ७७७०) से ।
सौजन्य : राधाबहन चौधरी

३१३. प्रस्ताव : दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंके बारेमें

[ २७ दिसम्बर, १९२७]

[२]

यह कांग्रेस हालाँकि दक्षिण आफ्रिकाके भारतीय प्रवासियों द्वारा प्राप्त की गई राहतको स्वीकार करती है और भारत तथा दक्षिण आफ्रिका संघके बीच हुए समझौतेको संघ सरकार द्वारा भारतीय प्रवासियोंके साथ ज्यादा बेहतर व्यवहार करनेकी इच्छाका प्रतीक मानती है, लेकिन वह तबतक सन्तुष्ट नहीं हो सकती जबतक प्रवासियोंको

  1. १. उत्कल यात्रा तथा आश्रम में गांधीजीके लौटनेके उल्लेखसे ।
  2. २. इस प्रस्तावका मसविदा गांधीजीने तैयार किया था। इसे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके मद्रासमें होनेवाले वार्षिक अधिवेशनमें २७-१२-१९२७ को कांग्रेस अध्यक्ष डा० मु० अ० अन्सारीने पेश किया, और यह सर्वसम्मतिसे स्वीकार कर लिया गया।