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राजनीतिक कैदी

व्यवस्था ही कुछ ऐसी है कि जब कभी उस व्यवस्थाको कोई खतरा होता है या खतरा मालूम होता है, तब ऐसी अवस्थामें प्रशासक लोग औचित्य या न्यायपूर्णताका ध्यान नहीं रखते। मैं कबूल करता हूँ कि अगर उनके राज्यको किसी तरहका खतरा न हो तो अब भी उनसे न्याय मिल सकता है। मगर जब कभी उनका शासन-तन्त्र खतरेमें हो या वे समझें कि खतरेमें है, तब न सिर्फ वे न्याय और सत्यको ही भूल जाते हैं बल्कि उनकी बुद्धि ही ठिकाने नहीं रहती, उस राज्यको बचाने के लिए उनकी दृष्टि में कोई भी कार्य या तरीका नीच या जघन्य नहीं रह जाता। डायरशाही या ओ'डायरशाही[१] कुछ एक अकेली मिसाल नहीं है। हाँ, जलियाँवाला बागको घटनाके पहले मैं उनकी ओरसे अन्धा बना रहा। सच पूछो तो हर देशमें, हर कालमें जब कभी उन्हें जरूरत पड़ी, उन्होंने डायर और ओ'डायरशाहीसे ही काम लिया है ।

मेरा विश्वास है कि जो भी राजनीतिक कैदी, मुकदमेके झूठे नाटकके बाद या उसके बिना ही, कैदमें हैं, वे इस सरकारी व्यवस्थाके हित-साधनके लिए ही कैद हैं । ये शासक रंगे हाथों पकड़े गये खूनीको, जो व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए किसीको मारे, भले ही छोड़ दें, मगर ये उस राजनीतिक कैदीको छोड़नेवाले नहीं हैं जिसके बारे में इन्हें शक हो कि वह इनके शासन-तन्त्रका विरोधी है और खासकर अगर उसका तरीका हिंसापूर्ण हो ।

इसलिए मुझे यह व्यर्थ और स्वाभिमानके विरुद्ध मालूम होता है कि लाला दुनीचन्द द्वारा उल्लिखित राजनीतिक कैदियोंके लिए कोई इन अफसरोंसे कुछ कहे या सुने । उनके ध्यानमें जिन कैदियोंकी बात है वे हैं गदरपार्टीके कैदी, पंजाब फौजी कानूनके अन्तर्गत बन्दी बनाये गये कैदी और बंगालके नजरबन्द कैदी । और फिर श्रीयुत सुभाष बोस जैसे एक दो आदमियोंकी रिहाईसे हमें भ्रममें नहीं पड़ जाना चाहिए। अगर उनका बुरा स्वास्थ्य आड़े न आ पड़ता तो शायद इतना सब आन्दोलन करनेपर भी वे छोड़े नहीं जाते। आखिर अधिकारियोंने क्या यह खूब साफ-साफ शब्दोंमें कह नहीं दिया है कि ये लोग केवल स्वास्थ्य खराब होने के कारण ही छोड़े जा रहे हैं? क्या अर्ल विन्टरटनने[२] यह प्रार्थना करनेपर कि शाही आयोगके लिए अच्छा वातावरण बनाने हेतु बंगालके नजरबन्दोंको छोड़ दीजिए, उन्हें छोड़ने से साफ इनकार नहीं कर दिया ?

खैर, जिन्हें ब्रिटिश न्याय-प्रियता और सच्चाईमें अब भी विश्वास हो, वे उनसे प्रार्थना करें ।

मेरा रास्ता साफ है । जो स्वतन्त्रता हम चाहते हैं, उसके लिए हमने अभी काफी कीमत नहीं दी है। इसलिए मैं तो मानता हूँ कि ये नजरबन्दियाँ उसी कीमतका एक छोटा अंश हैं जो हमें मनुष्योंका जन्मसिद्ध अधिकार पानेके लिए देनी चाहिए; और हमें सभी अत्याचार स्वेच्छासे सहने होंगे, न कि भेड़-बकरियों जैसे असहाय होकर । यह काम हम हिंसा या अहिंसा किसीके भी जरिये कर सकते हैं। हिंसाका रास्ता

  1. १. जनरल डायर और भो'डायर अप्रैल १९१९ में जलियांवाला बागमें हुए हत्याकाण्डके लिए उत्तर- दायी थे ।
  2. २. भारत मन्त्री ।