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३१५. एक पत्र[१]

२८ दिसम्बर, १९२७

प्रिय मित्र और भाई,

गाय सम्बन्धी प्रस्तावने मेरे दिलमें एक गहरा दाग डाल दिया है। मैं उसके ऊपर आपसे बातचीत करना और आपको अपनी कठिनाई बताना चाहूँगा। मैं आप दोनोंको चाहता हूँ और अगर सम्भव हो तो शुएबको भी । जो अन्य मित्र उपलब्ध हों, आप उन्हें भी ला सकते हैं ।

सप्रेम,

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

अंग्रेजी (एस० एन० १२३९३) की फोटो-नकलसे ।

३१६. राजनीतिक कैदी

अम्बालाके लाला दुनीचन्दने भारतवर्षकी अलग-अलग जेलोंमें बन्द राजनीतिक कैदियोंकी एक तालिका इंग्लैंडमें छपवाई थी । उसकी एक प्रति उन्होंने मेरे पास भेजी है। इसमें हिन्दुस्तानी पाठकोंके लिए तो कोई नई बात नहीं है और लेखक जो काम इससे साधना चाहते हैं, उसके लिए यह आसानीसे और भी अधिक पूरी और सही बनाई जा सकती थी। साथके पत्रमें वे मुझसे नरमीके साथ शिकायत करते हैं कि मैं राजनीतिक कैदियोंके बारेमें कुछ नहीं लिखता। अगर अपने इन देशभाइयोंके बारेमें कुछ भी न लिखनेका कारण मेरी उदासीनता या उपेक्षा होती तो उनकी शिकायत ठीक थी। लेकिन मेरा तो दावा है कि इन कैदियोंकी रिहाईके लिए मुझसे ज्यादा चिन्ता किसीको भी नहीं हो सकती। मगर मैं तो जान-बूझकर इस विषयमें चुप हूँ। मैं समझता हूँ कि 'यंग इंडिया' के पृष्ठोंमें बेकारकी बातें ज्यादा नहीं रहतीं। यहाँ जो-कुछ लिखा जाता है, वह एक खास प्रयोजनसे ही लिखा जाता है। एक समय वह भी था जब मैं ऐसे मामलोंको लेकर उनका विश्लेषण करके दिखलाया करता था कि अधिकांश मामलोंमें किस तरह ज्यादती की गई है। मगर यह बात तो तब की है जब ब्रिटिश सरकारपर मेरा विश्वास था और इसकी अच्छाईपर मुझे नाज था। मगर जब वह विश्वास नष्ट हो गया तब मेरी यह ताकत भी न रही कि सरकारी प्रशासकोंसे कुछ कहकर उनपर असर डाल सकूँ। मैं अब फिर ब्रिटिश न्यायप्रियता और न्याय- भावनाके गुण नहीं गा सकता। इसके विपरीत मुझे यह लगता है कि उनकी शासन-

  1. अनुमानतः यह मौलाना मुहम्मद अलोको लिखा गया था; देखिए पिछला शीर्षक ।