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नीलकी प्रतिमा और अहिंसा
पाद-पीठके पृष्ठभागपर खुदा हुआ अभिलेख इस प्रकार है :

१८६० में सार्वजनिक चन्देसे स्थापित ।

मैं यह कहनेका साहस करता हूँ कि ये बातें झूठी हैं। इन अभिलेखोंमें झूठा इतिहास अंकित है। इस समय मेरे पास [ इतिहासकार ] के या मैलेसनकी जिल्दें नहीं हैं, लेकिन एक भाईने मेरे लिए कहींसे टॉमसनका ज्ञानवर्धक प्रबन्ध 'द अदर साइड ऑफ द मेडल ' ला देनेकी कृपा की है। इस पुस्तकसे प्रकट होता है कि हमें स्कूलों और कॉलेजोंमें किस तरह गलत इतिहास पढ़ाया जाता है। पुस्तकसे मैं निम्न अंश उद्धृत कर रहा हूँ।

जब मेजर रेनॉड कानपुरके छुटकारेके लिए एक अग्रिम रक्षक दलको लेकर तेजीसे आगे बढ़े, उस समय उन्हें जनरल नीलको ओरसे निम्नलिखित निर्देश मिले :

"कुछ दोषी गाँवोंको नष्ट कर देने के लिए चुन लिया गया है, और उन गाँवोंमें रहनेवाले तमाम पुरुषोंको कत्ल कर देना है। विद्रोही रेजीमेंटोंके जो सिपाही अपनी ठीक सफाई पेश न कर पायें, उन्हें फाँसीपर लटका देना है। फतेहपुर शहरपर, जिसने विद्रोह किया था, आक्रमण करना है और पठानोंके घरोंको उनके निवासियों सहित नेस्तनाबूद कर देना है। सभी विद्रोहियोंके सिर, विशेषकर फतेहपुरके विद्रोहियोंके, काटकर ऊँचे स्थानोंपर लटका देना है। यदि डिप्टी कलक्टर पकड़ लिया जाये तो उसे फाँसी दे दो और उसके सिरको काटकर शहरकी किसी मुख्य (मुसलमानकी) इमारतपर लटका दो।"

के के अनुसार :

नीलके कारनामोंको छोड़ भी दें तो जब नीलने एक मेजरको कान-पुरकी ओर भेजा, उस समय निस्सन्देह लोगोंको बड़ी ही बेरहमीसे मौतके घाट उतारा गया । और बादमें नीलने जो-कुछ किया, वह कत्लेआमसे भी भयानक था। उसने लोगोंको जानबूझकर ऐसी यातनाएँ देकर मारा जैसी यातनाएँ देकर मारनेका अपराध वर्तनियोंके खिलाफ कभी साबित नहीं हुआ ।

सर जॉर्ज कहते हैं : नील उन व्यक्तियोंमें से है, जिसे औरताना किस्मकी बहादुरी दिखाने के बूतेपर ही वीरपद प्राप्त हो गया है और जिसकी मृत्यु हो जाने के कारण उस समय उसके आलोचकोंका मुँह बन्द हो गया । लेकिन अब चूँकि वह विगत इतिहासका विषय बन चुका है, इसलिए में कह सकता हूँ कि जहाँतक में अत्यन्त निष्पक्ष सूत्रोंसे जान पाया हूँ, उसमें कोई खास खूबी नहीं थी। नीलने जो नृशंसतापूर्ण कृत्य किये उसके लिए में उसे कभी माफ नहीं कर सकता हूँ और विशेषकर जिस गड़बड़ीके कारण हम लुधियानाकी रेजीमेंट खो बैठे, उस गड़बड़ीमें उसका जो हाथ था, उसके लिए। इलाहाबादमें अपनी नृशंसता और अविश्वासी प्रकृतिके कारण उसने फिरोजपुर रेजीमेंटको (जिसके वफादार सिपाहियोंके लिए मेरे हृदयमें लगभग