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७८. अराजकता बनाम कुशासन

एक आदरणीय मित्र लिखते हैं:'

आप राजनैतिक मामलोंपर अपना जो मत प्रकट करते हैं उसमें में बहुत कम हस्तक्षेप करता हूँ। आपने अभी हालमें अपने एक अग्रलेखमें एक वाक्य लिखा है; जो बहुत पहले कही हुई एक बातकी पुनरुक्ति है और जिसके कारण मुझे बरबस आपसे यह पूछना पड़ रहा है कि आप जैसे नैतिक प्रश्नों के व्याख्यातासे जितनी सावधानीकी आशा की जाती है, क्या आपने अपने शब्दोंको उतनी सावधानीसे तोल लिया है। आप कहते हैं कि अंग्रेजोंकी गुलामीसे मुक्ति मिल जाये तो आपको यहाँ अराजकताकी स्थिति भी स्वीकार्य होगी। किसी भी भारतीयके लिए विदेशियोंकी दासतासे मुक्त होनेको कामना करना और उसके लिए प्रयत्न करना बिलकुल स्वाभाविक, सहज और शुभ है। किन्तु कोई भी समझदार आदमी व्यवस्थित शासनकी जगह अराजकताकी स्थिति लाना पसन्द करे, यह बात बिलकुल समझमें आने योग्य नहीं है। पहली स्थितिमें कुछ तो अनुशासन रहता है, भले ही वह दूसरोंका लादा हुआ अथवा प्रेरित किया हुआ क्यों न हो; जबकि दूसरी स्थितिम तो कोई आत्मानु- शासन बिलकुल होता ही नहीं...।

और यदि जैसा कि आपका दावा है कि अहिंसा स्वभावतः रचनात्मक, सोद्देश्य और पवित्र है, तो उसका परिणाम अथवा लक्षण अराजकता नहीं हो सकता। यदि आपने इस शब्दका प्रयोग विचारपूर्वक किया हो, तो मैं यह कहना चाहता हूँ कि आपने मानव-जातिकी कोई सेवा नहीं की है। मानव जातिको तो यह स्मरण दिलाने की जरूरत है कि उसको अपना दृष्टिकोण व्यापक बनाना चाहिए, अराजक नहीं, जिसकी ओर उसकी प्रवृत्ति सहज होती है...

इस पत्रमें जो उत्कट भावना है, उसके सम्बन्धमें मुझे कोई सन्देह नहीं है। और मुझे इन मित्रके विचारोंका इतना खयाल है कि यदि मैं अपने विचारोंको उनके विचारोंके अनुरूप बना सकता तो प्रसन्नता से वैसा करता ।

किन्तु मुझे कहना चाहिए कि मैंने इस शब्दका चुनाव सोच-समझकर किया था । अराजकताका अर्थ है शासन अथवा व्यवस्थाका अभाव, अशासन अथवा अव्यवस्थामें से शासन अथवा व्यवस्था उत्पन्न हो सकती है, होती ही है; किन्तु कुशासन अथवा अव्यवस्थासे, जिन्हें शासन अथवा व्यवस्थाका पवित्र नाम दे दिया गया हो, शासन अथवा

१. केवल कुछ अंश ही यहाँ दिये जा रहे।