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वैदेशिक प्रचार

डाक्टर' इस स्थितिमें क्या करते? मैं इस पर स्वतन्त्र रूपसे विचार कर सकता तो जेकीको अवश्य ही न जानेकी सलाह देता। पर मुझे लगता है कि डाक्टर ऐसा न करना चाहेंगे और शायद आप भी यह नहीं चाहेंगे । स्त्रियोंका दुख मुझसे देखा नहीं जाता। पति विषय-वश होकर जो बोझ उनपर लादते हैं अगर मेरी चले तो उसमें से एक-एकको बचा लूं। किन्तु यदि भगवान सभी काम हमारी इच्छानुसार होने दे तो दुनियाका नाश हो जाये । इसलिए तटस्थ भावसे जो-कुछ हो सके उसीको करते रहनेमें छुटकारा है।

मोहनदासके प्रणाम

गुजराती (जी० एन० १२७४) की फोटो-नकलसे ।

७७. वैदेशिक प्रचार

मैं वैदेशिक प्रचारके मसलेपर कोई गर्मागर्म बहस नहीं छेड़ना चाहता; किन्तु मैं ऊपरका लेख' इसलिए छाप रहा हूँ कि उसमें बहुत-से कार्यकर्ताओंके विचारोंका सार आ जाता है। उनके वे विचार इसलिए कमजोर नहीं कहे जा सकते कि वे उन्हें सार्वजनिक रूपसे प्रकट नहीं करते। १९२० का सच्चा और शुद्ध असहयोग यद्यपि आज व्यापक नहीं दिखलाई देता, पर वह निश्चय ही कुछ लोगोंके जीवनमें दिनोंदिन और भी अधिक घर करता चला जा रहा है और आज जो कुछ इस देशमें हो रहा है, उससे उनके विश्वासकी पुष्टि ही होती है। मगर वे समय असमय, हमेशा शोर मचाकर अपना असर डालनेसे रहे। इसके विपरीत वे समझते हैं कि हम जहाँ कहीं बोलकर स्वराज्यकी सेवा नहीं कर सकते, वहाँ चुप रहकर ही स्वराज्यकी ज्यादा अच्छी सेवा करते हैं; और इसलिए जहाँ कहीं उनसे हो सकता है, वे नम्रतासे सक्रिय रूपमें सहायता कर रहे हैं ।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १-३-१९२८

१. डा० प्राणजीवन मेहता।

२. च० राजगोपालचारीके लेखके लिए देखिए परिशिष्ठ १ ।