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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यह तो देखिए कि भारतकी लूटको जारी रखनेके लिए ब्रिटेनके राजनीतिज्ञ एक दलको दूसरे दलसे किस प्रकार निर्लज्ज होकर लड़ा रहे हैं। उन्हें भय है कि हिन्दुओं और मुसलमानोंके मतभेदोंके बलपर ही ब्रिटेनकी प्रभुसत्ताके अधीन वे इस अत्यन्त श्रेष्ठ देशपर अधिकार बनाए रखनेकी दिशामें बिलकुल निश्चिन्त नहीं रह सकते, इसलिए अब अचानक उनकी दृष्टि अस्पृश्योंपर जा लगी है। वे लाचार राजाओंको लोगोंसे लड़ानेका प्रयत्न कर रहे हैं। सर जॉन साइमनको भी इसी चालका सहारा लेनेकी जरूरत मालूम पड़ी है। लोग कहते हैं कि उनकी बुद्धि बहुत प्रखर है, किन्तु वह उस झीने पर्देको नहीं भेद पाती जिसके नीचे उनके विचारको पक्का करनेके लिए की जानेवाली साजिशें छुपी हुई हैं और उन्हें भारतके वातावरणमें कोई गहरी खराबी भी दिखाई नहीं देती। इस प्रकारके 'सुसंगत अनुशासन' से भारतके लोग जितने पौरुषविहीन और कमजोर बन गये हैं उतने इतिहासके किसी कालमें अन्य किसी बातसे वे नहीं हुए।

मेरी अपनी स्थिति और मेरा विश्वास स्पष्ट और असंदिग्ध हैं। मैं न तो वर्तमान शासनको चाहता हूँ और न अराजकताको। मैं यह चाहता हूँ कि अराजकताकी इस महान यातनाकी दशामें से गुजरे बिना यहाँ सच्ची व्यवस्था कायम हो जाये। मैं इस अव्यवस्थाको अहिंसासे नष्ट करना चाहता हूँ अर्थात् मैं बुराई करनेवालोंके हृदय परिवर्तित करना चाहता हूँ। मैंने इस कार्यके लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया है। इससे पहलेके अनुच्छेदोंमें मैंने जो कुछ लिखा है वह सीधा मेरे उस अहिंसाके व्यावहारिक ज्ञानसे उद्भूत है, जिसकी शक्ति मनुष्यको ज्ञात शक्तियों में सबसे बड़ी है। मेरा अहिंसाकी शक्तिमें विश्वास अडिग है। इसी तरह इस बातमें भी मेरा विश्वास अडिग है कि भारतके लोगोंमें अहिंसासे ही स्वतन्त्र हो सकनेकी शक्ति है, किसी अन्य उपायसे नहीं। किन्तु भारतके लोगोंमें यह शक्ति सत्य अथवा तथ्योंको दबाकर नहीं जगाई जा सकती, भले ही वे सत्य अथवा तथ्य हमें इस समय कितने ही बुरे क्यों न जान पड़ें। ईश्वर न करे कि भारत अहिंसाका पूरा पाठ पढ़ने से पहले किसी रक्तमय संघर्षमें फँस जाये। रक्तमय संघर्ष स्वतन्त्रताकी तथा वर्तमान स्थितिके बीचकी एक अवस्था है और वह प्रायः आवश्यक होती है। किन्तु इस अवस्थाका यदि भारतमें आना बदा ही हो तो उसे इस अवस्थाका सामना अपनी स्वतन्त्रताको यात्रामें ही अनिवार्य मानकर करना होगा। उसे इस अवस्थाको वर्तमान अवस्थासे निश्चय ही अधिक अच्छा मानना होगा जो केवल कहनेके लिए ही अच्छी है, किन्तु है ऐसे लम्बे- चौड़े सफेद आवरणकी तरह जिसके नीचे शुद्ध हिंसा छिपी हो।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १-३-१९२८