पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 36.pdf/११६

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८५. गुजरातमें खादीकी फेरी

श्री विठ्ठलदास जेराजाणी लिखते हैं:

गुजरातमें ऐसे कामकी जरूरत थी । जो काम आरम्भ हुआ है वह यदि जारी रहेगा तो वातावरण खादीमय बनाने में सहायता मिलेगी। मैं गुजरातके सम्बन्धमें यह मानकर बैठा हूँ कि वहां स्थानीय स्वयंसेवकोंकी सहायता सर्वत्र मिलेगी ।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, ४-३-१९२८

८६. काठियावाड़के ढोर

काठियावाड़से पशुपालनके एक विशेषज्ञ लिखते हैं :

यह् पत्र मुख्यतः राजाओं और उनके कर्मचारियोंके विचारके योग्य है। इसमें पशु- रक्षाके जो उपाय बताये गये हैं, उनकी अलग-अलग ढंगसे इस पत्रमें चर्चा हो चुकी है। लेकिन चूंकि काठियावाड़के ही लिए वहाँके एक अनुभवीने इन्हें सूचित किया है, इसलिए वे यहाँ दिये गये हैं। एक समय काठियावाड़की गायें और बैल मशहूर थे। आज वे ही आर्थिक दृष्टिसे भाररूप समझे जाकर कसाईके हाथों बेचे जा रहे हैं। यह काठियावाड़के प्रत्येक राज्यके लिए शर्म की बात है।

इस सुधारमें न पैसेकी जरूरत है और न किसी बड़े साहसकी। सिर्फ आलस्य छोड़ने और दरबारके बड़े झगड़ोंमें से थोड़ी-सी फुरसत निकालनेकी आवश्यकता है। निकम्मे साँडोंको खस्सी करने और पशुओंके चारेको ठीक ढंगसे तैयार करने में कोई बड़ा प्रयत्न जरूरी नहीं होता। राज्योंको चाहिए कि कुछ छात्रवृत्तियाँ देकर थोड़े विशेषज्ञ तैयार करें और तबतक जो लोग सहायताके लिए मिल जायें उनसे मदद लेकर काम करना चाहिए ।

पिंजरापोलोंके संचालकोंके लिए भी ऊपरकी सूचनाएँ ध्यान देने योग्य हैं। अपंग ढोरोंको जरूर पाला जाना चाहिए; मगर मोटे-ताजे ढोरोंको कसाईखाने जानेसे रोकना उससे हजार गुना जरूरी है।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, ४-३-१९२८

१. पत्र यहाँ नहीं दिया जा रहा है। इसमें गुजरातमें फेरी लगाकर खादी बेचनेका विवरण था।

२. यहाँ उद्धृत नहीं किया जा रहा है।