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८७. बारडोलीमें सत्याग्रह

पाठक इस अंकमें सरकार और श्री वल्लभभाईके बीच हुए पत्र-व्यवहारको देख सकते हैं। एक प्रकारसे तो यह पत्र व्यवहार एक सुखद प्रकरण है। मैं जहाँतक देख पाया हूँ वहाँ तक मुझे श्री वल्लभभाई द्वारा भेजे गये तथ्यों और उनपर आधारित दलीलोंमें कोई भी दोष दिखाई नहीं देता। सरकारके उत्तरमें चालाकी, टालमटोल और असभ्यताकी झलक दिखाई देती है। सत्ता पाकर मनुष्य कैसा अन्धा हो जाता है और उसके मदमें चूर होकर अपना मनुष्यत्व कैसे भूल जाता है, यह देखकर दुख होता है। मनुष्यकी ऐसी भूलोंके हजारों किस्से हमें मालूम हैं फिर भी प्रत्येक नये उदाहरणसे उसपर दुख तो होता ही है। क्योंकि स्वयं बुराई करते भी मनुष्य- मन-ही-मन अच्छाई चाहता है। इसलिए उसे दूसरोंकी उद्धतता, अविवेक आदिसे दुख होना स्वाभाविक है।

मैं इन तथ्यों और दलीलोंके गुण-दोषोंमें नहीं जाना चाहता। शायद पाठकके सामने गुण-दोषोंकी पूरी जाँच-पड़ताल करनेके लिए पूरा साहित्य न हो, हो भी तो सम्भव है उसमें पड़कर अच्छी तरह विचार करनेका धीरज न हो । तो भी किसी भी न्याययुक्त दृष्टिसे देखनेपर अनिच्छुक लेकिन तटस्थ पाठकको वल्लभभाईकी माँग उचित ही मालूम होगी। वल्लभभाई यह नहीं कहते कि "मेरी दलील सरकारको कबूल करनी ही चाहिए। उनका कहना तो यह है, सरकार एक ओर है और जनता दूसरी ओर ।" दोनोंमें तथ्योंके विषयमें मतभेद है। इस मतभेदकी जाँच करनेके लिए एक तटस्थ पंच होना चाहिए। पंच जो भी निर्णय करेगा उसे जनताकी तरफसे वल्लभभाई स्वीकार कर लेंगे ।

वल्लभभाई पटेलके पत्रका मध्यबिन्दु, उसका निचोड़ यह है। यहाँ यह सवाल आ खड़ा होता है कि सरकार और लोगोंके बीच भला यों कोई पंच हो सकता है ? सरकार क्या सर्वोपरि नहीं है? यों तो सरकार कानूनके पिंजरेमें खड़ी होनेको तैयार मानी जाती है, किन्तु लगानको सरकार अदालतके बाहर रखती है। इसका कारण समझना सामान्य मनुष्यकी अक्लके बाहर है। हम अभी इसके कारणकी बहसमें नहीं पड़ेंगे ।

पर जब लगानका सवाल सामान्य तौरपर कानूनके बाहर है, तब वल्लभभाई लोगोंकी ओरसे पंच न माँगें तो और क्या करें ? सरकारको अर्जी देकर बैठ रहनेकी सलाह दें ? ऐसी सलाह देनी भी हो, तो लोगोंने ही वह रास्ता भी खुला नहीं छोड़ा, क्योंकि वे अर्जी दे चुके हैं। अर्जी देनेका काम तो वल्लभभाईसे नहीं लिया जा सकता, इसलिए जिनसे वह काम लिया जा सकता था, उनकी मार्फत अर्जियाँ भी दी गईं। इससे कुछ न हुआ, इसलिए लोग वल्लभभाईके पास सत्याग्रहके युद्धकी सरदारी कबूल कराने गये ।