पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 36.pdf/१२०

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९०. पत्र : ए० जे० साँडर्सको

आश्रम
साबरमती
५ मार्च १९२८

प्रिय मित्र,

आपके पत्र और रु० ५० के मनिआर्डरके लिए धन्यवाद । कृपया विद्यार्थियोंको मेरी तरफसे धन्यवाद दे दें और उनसे यह कहें कि आशा है कि यह दरिद्रनारायणकी ओरसे उनकी भेंटकी केवल पहली किस्त ही है और वे आदतन खद्दर पहनते होंगे ?

हृदयसे आपका,

ए० जे० सॉडर्स महोदय
बसंर
अमेरिकन कालेज
मदुरा

अंग्रेजी (एस० एन० १३०९६) की माइक्रोफिल्मसे ।


९१. पत्र : वी० एस० भास्करनको

आश्रम
साबरमती
५ मार्च, १९२८

प्रिय भास्करन

आपका पत्र पाकर मुझे प्रसन्नता हुई। आपने जो भी शरारतेंकी हैं निःसन्देह उनके लिए मैं आपको माफ करता हूँ। लेकिन आपके बारेमें मैंने जो कुछ सुना था, आपके पत्रसे उसकी पुष्टि होती है। बिलाशक वह सब गलत था ।

अब आप मुझसे कहते हैं कि मैं वह सब रुपया जो आपने निकाला है अपने प्रभावसे फिर पूरा कर दूँ; आप कहते हैं कि आप उसके प्रायश्चित्त स्वरूप उपवासके रूपमें तपस्या और न जाने क्या-क्या कुछ करनेको तैयार हैं। अब आपको किसी प्रकार भी मुझसे प्रभावित हुए बिना, जो-कुछ भी रामनाथन और राजाजी कहें, मान लेना चाहिए। आपके लिए यही करना सही होगा। और यदि आप पैसा न पूरा कर