नौ
हमारी द्विविधापूर्ण स्थितिसे उत्पन्न बहुत-सी बुराइयों और दिक्कतोंका इलाज गांधीजीने "द्विविधारहित, दृढ़ और स्पष्ट कार्य" को बताया जो उस "दैदीप्यमान सूर्यके समान होता है जो केवल अन्धकारको ही दूर नहीं करता, वरन् बीमारियोंके सब कीटाणुओंको भी नष्ट कर देता है । (पृ० २६२) उनका यह विश्वास था कि सच्ची धार्मिक भावना जीवनकी छोटीसे-छोटी बातों तकमें प्रकट होगी, इसलिए वे स्वच्छता की तथा सामाजिक और राजनीतिक जीवनकी थोड़ी-सी भी अनियमितताको आध्यात्मिक दरिद्रताकी निशानी" (पृ० ४७२) मानते थे ।
इस खण्डमें दो स्मरणीय सन्देश हैं: एक इन्टरनेशनल फैलोशिपके लिए जिसमें "बन्धुत्वके चुपचाप किये गये कार्य” को “भारी-भरकम उपदेशों” (पृ० २१८) से अधिक महत्वपूर्ण बताया गया है; और दूसरा सन्देश, जो अमेरिकी बाई० एम० सी० ए० के लिए है, यह है; "ईश्वर सत्य । सत्यकी प्राप्तिका पथ सभी जीवधारियोंकी स्नेहपूर्ण सेवासे होकर जाता है"। (पृ० २९३)