पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 36.pdf/१३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

१०४. पत्र : रेवाशंकर झवेरीको

सत्याग्रह आश्रम
साबरमती
९ मार्च १९२८

आदरणीय रेवाशंकरभाई,

भाई महादेवसे पत्र लिखवाया था। मुझे भय है कि उसमें आपको एक बात लिखनी रह गई है। महादेव यहाँ नहीं है इसलिए तसदीक नहीं कर सकता । डाक्टर अन्सारीके विषयमें लिखानेका इरादा था। इसमें सन्देह नहीं कि डाक्टर अन्सारी खुद एक बहुत कुशल व्यक्ति हैं पर इस विषयमें स्वयं उनके पास कोई विशेष योग्यता नहीं है। वह एक स्विस डाक्टरके इलाजको बहुत मानते हैं। यह इलाज अनेक घोड़ोंसे लिए गये सीरमसे किया जाता है। वह एक नलीके लिए एक हजार पौंड लेते हैं। किन्तु यह इलाज सभीको अनुकूल नहीं बैठता। यूरोपके सारे डाक्टर भी उसकी खोजको प्रामाणिक नहीं मानते हैं। मुझे लगता है कि हमारे लिये उस चक्करमें पड़नेकी जरूरत नहीं है। उसे एक अच्छे डाक्टरके हाथमें सौंपकर हमें तो शान्त हो जाना चाहिए ।

मैंने अब दूध शुरू किया है। मेरा स्वास्थ्य ठीक रहता है।

मोहनदासके प्रणाम

गुजराती (जी० एन० १२७८) की फोटो--नकलसे ।

१०५. पत्र : सतीशचन्द्र दासगुप्तको

आश्रम
साबरमती
१० मार्च, १९२८

प्रिय सतीश बाबू,

मुझे आपके दो पत्र मिले हैं। उनसे उन्हीं आशंकाओंकी पुष्टि होती है जो बहिष्कारकी सनसनीपूर्ण सूचनाओंके पढ़नेपर मेरे मनमें उठी थी। मुझे खेद है कि डा० रायने उस घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर कर दिये, जिसके बिलकुल बेकार होनेकी बात वे जानते थे ।

आपके लेखमें जो प्रस्ताव है वह मुझे पसन्द नहीं है। मेरा विचार है कि हमें

किसी भी तरहकी हालतोंमें विदेशी धागेके इस्तेमालमें नहीं उलझना चाहिए। हमें इसे

१.धीरूको