पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 36.pdf/१४४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
११२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जरिये बात करूंगा। मुझे आशा है कि अब कार्यके लिए क्षेत्र तय करनेमें कोई कठिनाई नहीं होगी ।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी (एस० एन० १३१०५) की फोटो--नकलसे ।

११८. पत्र : हेमप्रभादेवी दासगुप्तको

सत्याग्रह आश्रम
साबरमती
१२ मार्च,१९२८

प्रिय भगिनि,

आपके सब पत्र मीले हैं। अब तो आपका शरीर ठीक होगा। परंतु यदि न मी होवे तो भी मैं चाहता हूं कि आप स्वस्थ रहें। भगवानकी तो आज्ञा है की हम दुःखेषु अनुदिग्न मन: और सुखेषु विगतस्पृहः' रहें। और ऐसे ही मौकेपर हमारे पठन-पाठनका उपयोग हमारे करना है वही उसका सच्चा उपयोग है। अनीलके देहका स्मरण भी छोड़ना चाहीये । वह देह पंच महाभूतमें से बना था उसीमें मील गया है। आत्मा तो अमर है। अब किस बातकी चिंता करे ? मीरांबाईके साथ कहें कि होनी हो सा हो । सब कुछ राम ही करता है ऐसा समझकर हम संतुष्ट रहें। रामनामकी महिमा तुलसीदासजीके पुस्तकमें से ध्यानपूर्वक पढ़ती रहो। एक नामके ही आधारसे हम जीये और उसीके जप जपते हुए हम मरें यही प्रार्थना सदा कीजीये।

बापूके आशीर्वाद

जी० एन० १६५५ से ।


१. भगवद्गीता, अध्याय २, श्लोक ५६ ।