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१२०. हमारी मिलें क्या कर सकती है ?

प्रत्येक व्यक्ति इस बातके लिए उत्सुक है कि हम अपने इतिहासकी इस नाजुक घड़ीमें कुछ सच्ची शक्ति दिखा सकें। उत्तरोत्तर यह महसूस किया जा रहा है कि ऐसी शक्ति केवल ब्रिटिश कपड़ेके बजाय तमाम विदेशी कपड़ोंके बहिष्कार द्वारा विकसितकी जा सकती है और दिखाई जा सकती है। इस बहिष्कारमें हमारी मिलें, यदि वे चाहें, तो महत्वपूर्ण ही नहीं अपितु निर्णायक भाग ले सकती हैं।

किसी-न-किसी दिन उन्हें इस विदेशी सरकार और जनतामें से एकको चुनना होगा। इसमें कोई सन्देह नहीं कि वे अपने अस्तित्वके लिए बड़ी हद तक, सरकारकी सदाशयता पर नहीं तो उदारता पर निर्भर हैं। थोरोने सच ही कहा था कि बुरी सरकारके अधीन धनवान् होना पाप और निर्धन रहना पुण्य है। धनवानोंका धन सदा तत्कालीन सरकारके नियन्त्रणमें रहता है--चाहे सरकार अच्छी हो या बुरी ।

परन्तु यदि मिलें अपने अस्तित्वके लिए सरकारकी उदारता या सदाशयता पर निर्भर हैं तो वे जनताकी उदारता और सदाशयता पर किसी भी तरह उससे कुछ कम निर्भर नहीं हैं। वे जनताकी तभी तक उपेक्षा कर सकती है जबतक जनता अनभिज्ञ, उदासीन या असंगठित रहे । परन्तु पिछले सात साल राष्ट्रने व्यर्थ नहीं गँवाये हैं। इन सात सालोके दौरान जो सामूहिक जागरण हुआ है, वह कभी नष्ट नहीं हो सकेगा। कोई नहीं कह सकता कि जनता कब और कैसे अपनी शक्ति दिखायेगी ।

परन्तु मिलोंकी विशेष स्थिति है। वे थोड़ा-सा साहस दिखाकर, राष्ट्रके सच्चे हितोंका थोड़ा-सा ध्यान रखकर और थोड़ा-सा स्वार्थ-त्यागकरके सरकारको बदल सकती हैं और जनताका हित साधन कर सकती हैं।

मेरी विनम्र सम्मतिमें मिलें यह काम इस तरह कर सकती हैं :--

तेजी और मन्दीके कुछ सालोंका निम्नतम औसत निकाल कर वे अपनी वस्तुओंकी कीमतें स्थिर कर सकती हैं।

वे बहिष्कारका आयोजन करनेवाले नेताओंके साथ राष्ट्रके लिए आवश्यक कपड़ेके परिमाण और गुणके सम्बन्धमें समझौता कर सकती हैं।

खादी संस्थाएँ खादीकी जिन किस्मोंको जल्दीसे और आसानी से तैयार कर सकती हैं, मिलें उनका उत्पादन छोड़कर और इस तरह अपनी शक्ति बचाकर उसे उन किस्मोंके कपड़ेके ज्यादा उत्पादनमें लगा सकती हैं, जिन्हें फिलहाल खादी-संस्थाओंकी अपेक्षा वे ज्यादा आसानी से तैयार कर सकती हैं।

वे कमसे-कम मुनाफा ले सकती हैं और यदि बचत हो जाये तो उसे बहिष्कार आन्दोलनमें लगा सकती हैं या यदि यह अनावश्यक हो तो उस बचतको मजदूरोंकी दशा सुधारनेमें लगा सकती हैं।