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१३३. बहिष्कारका शस्त्र

सुना है कि जो लोग सरकारका कर चुकाना चाहते हैं, उनके विरुद्ध बार- डोलीके सत्याग्रही बहिष्कारके शस्त्रका उपयोग करना चाहते हैं। बहिष्कारका शस्त्र बहुत कड़ा है और मर्यादाके भीतर ही रहकर सत्याग्रही उसे काममें ला सकते हैं। बहिष्कार हिंसक और अहिंसक दोनों प्रकारका हो सकता है । सत्याग्रही तो केवल अहिंसक बहिष्कार ही कर सकता है। यहाँ तो मैं केवल दोनों बहिष्कारोंके कुछ दृष्टान्त भर देना चाहता हूँ ।

सेवा न लेना तो अहिंसक बहिष्कार है; किन्तु सेवा न देना हिंसक बहिष्कार होगा।

बहिष्कृतके यहाँ खाने न जाना, उसके यहाँ विवाहादि प्रसंगोंमें न जाना, उसके साथ सरोकार न रखना, उसकी मदद न लेना, वगैरा बातें अहिंसक त्याग हैं।

बहिष्कृत बीमार हो तो उसकी सेवा न करना, उसके यहाँ डाक्टरको न जाने देना, उसके यहाँ कोई मर जाये तो अन्तिम संस्कारोंमें मदद न करना, उसे कुआँ, मन्दिर आदिका उपयोग न करने देना वगैरा हिंसक बहिष्कार हैं। गहरा विचार करने पर जान पड़ेगा कि अहिंसक बहिष्कार अधिक समय तक टिक सकता है, और उसे तोड़नेमें बाहरकी कोई शक्ति सफल नहीं हो सकती। हिंसक बहिष्कार अधिक दिनों नहीं चल सकता और उसे तोड़नेमें बाहरकी शक्तिका बहुत उपयोग हो सकता है। हिंसक बहिष्कारसे अन्त में संघर्षकी हानि ही होती है। असहयोगके युग में ऐसे नुकसानके कितने ही उदाहरण दिये जा सकते हैं। पर इस प्रसंगमें मैंने जो भेद दिखलाया है, वही बारडोलीके सत्याग्रहियों और सेवकोंके लिए काफी होना चाहिए ।

[ गुजराती से ]
नवजीवन, १८-३-१९२८

१३४. तार : ना० र० मलकानीको

साबरमती
१९ मार्च,१९२८

मलकानी बाढ़ सहायता समिति
हैदराबाद, सिन्ध
तुम्हें त्यागपत्र दे देना चाहिए ।

बापू

अंग्रेजी (जी० एन० ८८३) की फोटो-नकलसे ।


१. देखिए “पत्रः ना० र० मलकानीको ”, २०-३-१९२८।