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२८०. पत्र : जवाहरलाल नेहरूको

आश्रम
साबरमती
१७ अप्रैल, १९२८


प्रिय जवाहर,

तुम्हारा पत्र मिला। क्या तुम्हें मालूम है कि तुम्हारे मुझे यह लिखनेपर भी कि तुम पंजाब जा रहे हो, मुझे मालूम नहीं था कि तुम सम्मेलनके अध्यक्ष होकर जा रहे हो ? जब डा० किचलूने मुझे लिखा था, तब उन्होंने भी इस बारेमें कुछ नहीं बताया था कि अध्यक्ष कौन होगा। बहरहाल जब मुझे पता लगा कि अध्यक्षता तुमने की है, तो मुझे प्रसन्नता हुई।

तुमने सम्मेलनमें जो चीज देखी है, वह मुझे तो हर जगह दिखाई देती है। कह नहीं सकता मुझे सब जगह जिस बातका आभास मिलता है वह भी तुम्हारे ध्यानमें आई है या नहीं। वह है गाम्भीर्यका पूर्ण अभाव और जिसमें सतत अध्यवसायकी जरूरत पड़ती हो ऐसा कोई ठोस काम करनेमें अरुचि ।

क्या तुम्हें पंजाबमें हिन्दू-मुस्लिम एकताकी कोई आशा है ?

मैं यूरोपकी यात्राके सम्बन्ध में अभी तुम्हें कोई निश्चित समाचार नहीं दे सकता।

मिलोंके झगड़ेके सम्बन्धमें इस वक्त तक तुम्हें सब कुछ अपने पिताजीसे मालूम हो गया होगा।

अंग्रेजी (एस० एन० १३१९४) की फोटो-नकलसे।

२८१. पत्र : डेनियल हैमिल्टनको

आश्रम
साबरमती
१७ अप्रैल, १९२८

प्रिय मित्र,

आपके स्नेह भरे पत्र और आमन्त्रणके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ । यदि मैं यूरोप गया तो मैं निश्चय ही आपके घर आना और आपसे समान हितके मामलों पर चर्चा करना चाहूँगा ।

मुझे आधुनिक अर्थ-व्यवस्थापर आपका लिखा लेख निस्सन्देह बहुत पसन्द है। यदि इससे सम्बन्धित कोई दूसरा साहित्य जिसे आप चाहते हों कि मैं ध्यानसे पढ़ू, हो तो कृपया मुझे सूचित कीजिए। यदि आप मेरे लिये कोई ऐसा लोकप्रिय लेख