पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 36.pdf/२८६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

२८४. गलत पदचिन्होंपर

लोगोंके दिमाग चक्करमें डाल देनेके, इधर उधरके सवाल उठाकर या मुख्य प्रश्नके समर्थन में पेश की गई दलीलोंमें भूल निकालकर या निकालनेका दावा करके मुख्य प्रश्नपर से लोगोंका ध्यान हटाने के सरकारके या उसको तरफसे किये प्रयत्न अनोखे हैं। यह कबूल करना सरकारको अनुकूल नहीं बैठता है कि उसका इतिहास ही हिन्दुस्तान के उद्योग-धंधोंके विनाशका, हिन्दुस्तान के पुरुषत्वके विनाशका इतिहास है। यह बात वारंवार मंचों परसे भाषणों और [ समाचारपत्रों में छपे] लेखोंमें कही जा चुकी है कि ईस्ट इन्डिया कम्पनीके नौकरोंके अत्याचारोंसे बचने के लिए हिन्दुस्तानी जुलाहोंने अपने अँगूठे आप काट डाले थे। क्योंकि कम्पनीके नौकर उनसे जबर्दस्ती रेशम लपेटवाते थे। अगर जुलाहे के अंगूठा न हो तो वह रेशम लपेटनेका अपेक्षित काम नहीं कर सकता था। इस कथाको झूठी प्रमाणित करनेका अभी हाल में किया गया प्रयत्न भी सरकारके उपर्युक्त ढंगके प्रयत्नों से ही एक है और इसमें इतिहासको गलत प्रमाणित करनेके लिए विलियम बोल्ट्सकी प्रामाणिकता के विरुद्ध गड़े मुर्दे उखाड़े गये हैं। इन्हीं बोल्ट्सके प्रमाणके आधारपर स्व० रमेशचन्द्र दत्तने पहले पहल अँगूठे काटनेकी बात लिखी थी। इस बातका खण्डन करनेवाला यह नहीं कह सका है कि विलियम बोल्ट्सने झूठी बात लिखी थी, बल्कि वह कहता है कि बोल्ट्सका कोई अपना चरित्र ही नहीं था जिसकी वह चिन्ता करता, इसलिए उसकी बात पर विश्वास नहीं करना चाहिए। वह आगे कहता है कि बोल्ट्स तो कम्पनीका, एक प्रस्ताव के अन्तर्गत बर्खास्त किया हुआ नौकर था । उस प्रस्ताव में बताया गया था "यह कम्पनीका बहुत ही अयोग्य और अ-लाभकारी नौकर है। देशीय व्यापारके अधिकारोंके संबंध में उसके सिद्धान्त बहुत बुरे रहे हैं, जिन पर वह दृढ़तासे अमल करता रहा है।" टुटपुंजिए वकीलोंकी यह चालें कौन नहीं जानता, कि वे गवाहोंका चरित्र बुरा साबित कर उनकी गवाहीको झूठी और महत्वहीन बताते हैं, मानो दुश्चरित्र आदमी कभी सच बोल ही नहीं सकता। मैं यह कहनेका साहस करता हूँ कि विलियम बोल्ट्सका चरित्र चाहे जैसा रहा हो, किन्तु अंगूठे काटने के संबंध में उसकी बात तबतक झूठी नहीं मानी जा सकती, जबतक कि अन्यथा यह सिद्ध नहीं किया जाता और इस अंगूठे काटनेकी बातको अविश्वसनीय साबित करने के लिए एक भी सबूत पेश नहीं किया गया है। बल्कि इसके विपरीत इस बातसे भी अधिक संभव और क्या हो सकता है कि दण्ड और रोजके अत्याचारोंसे बचने के लिए बुनकरोंने एक बारगी ही वह काम करके (अँगूठे काटकर) अपनेको बुनाईके उस काम के लिए अयोग्य बना लिया, जो उनसे जबरन्, असह्य दण्ड देकर कराया जाता था ? आखिरकार विलियम बोल्ट्सकी गवाही भी तो भारतवर्षके उद्योगोंके विनाशकी इस कहानीका एक अंश भर ही है, जो रमेशचन्द्र दत्तने इतने चुटीले ढंगसे भिन्न-भिन्न प्रकारके गवाहोंके आधारपर लिखी है। उन सबकी गवाहियोंका कुल मिलाकर जो