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गलत पदचिन्होंपर

प्रभाव पड़ता है, वह दुर्निवार हो जाता है। मुख्य बात तो यह है कि क्या खूब सोच समझकर और जान-बूझकर भारतीय उद्योगोंका नाश किया गया था या नहीं। अगर किया गया था, तो एककी गवाहीको छोड़ देने से भी बहुत ही कम फर्क पड़ेगा। दोषीके मुँहसे यह बात शोभा नहीं देगी कि सौ गवाहों में से एक झूठा था। मगर जैसा कि मैंने ऊपर कहा है, विलियम बोल्ट्सकी गवाहीको अविश्वसनीय साबित करने के लिए एक भी संगत तर्क नहीं पेश किया गया है। खैर रमेशचन्द्र दत्तके 'भारतवर्षके आर्थिक इतिहास के पहले खण्डमें से मैं कुछ उद्धरण देता हूँ । वे कहते हैं :

पिछले दो अध्यायों में वर्णित बातोंसे जान पड़ेगा कि १९ वीं शताब्दीके पहलेवाले दस वर्षों तक भी हिन्दुस्तान के अधिकांश मनुष्य तरह-तरह के उद्योग धंधोंमें लगे हुए थे । तब तक भी कपड़ा बुनना लोगोंका राष्ट्रीय उद्योग था । लाखों स्त्रियाँ सूत कात-कातकर परिवारकी आमदनी बढ़ाती थीं। रंगाई, चमड़ेकी कमाई और धातुओंपर काम करनेसे भी लाखोंकी रोजी चलती थी। मगर ईस्ट इंडिया कम्पनीकी नीति भारतीय उद्योगोंको पनपने देनकी नहीं थी । पिछले अध्यायमें मैं कह आया हूँ कि सन् १७६९ में ही कम्पनीके डायरेक्टरों (निदेशकों) की इच्छा थी कि बंगालमें कच्चे रेशमके उत्पादनको प्रोत्साहन दिया जाये और रेशमी कपड़ेके उत्पादनको बढ़ावा न दिया जाये। और उन्होंने यह भी हुक्म निकाला कि रेशम लपेटनेवालोंसे कम्पनीके कारखानोंमें काम कराया जाये और 'सरकारकी ओरसे सख्त सजा' का डर दिखाकर उन्हें बाहर काम करनेसे रोका जाये। इस आदेशका आशानुकूल असर भी पड़ा। भारतमें रेशमी और सूती कपड़ा कम बनने लगा। पिछली सदियोंमें जो लोग पहले यूरोप और एशियाके बाजारोंको रेशमी और सुती कपड़ेका निर्यात किया करते थे वही अब अधिकाधिक परिमाणमें कपड़ेका आयात करने लगे।

इन तरीकोंसे इंग्लैंडसे रेशमी और सूती कपड़ेका आयात इतना बढ़ गया है कि जहाँ सन् १७९४में १५६ पौण्डका कपड़ा आया था सन् १८१३ में १,०८,८२४ पौण्ड तक बढ़ गया । सन् १८१३में कम्पनीकी (चार्टर) सनद दुहरायी गई और उसके पहलेकी जाँच में महत्वपूर्ण गवाही ली गई थी। लेखक कहता है: “हाउस ऑफ कॉमन्स (पालियामेंट) के सदस्योंने भारतीय उद्योगों के बारे में यह जानना चाहा था कि किस तरह ब्रिटिश उद्योग भारतीय उद्योगोंकी जगह ले सकते हैं और किस तरह उनका नाश करके ब्रिटिश उद्योगोंकी उन्नति की जा सकती है ।"

हेनरी सेन्ट जॉर्ज टकरने इंग्लैंडकी व्यावसायिक नीतिका वर्णन इस प्रकार किया है :

हमने इस देश में भारतवर्ष के संबंध में कौनसी व्यावसायिक नीति अपनाई है ? रेशमी कपड़े बनानेका उद्योग और रेशम और सूतको मिलाकर बनाये कपड़े, एक जमाने से हमारे बाजारोंसे बिलकुल उठ गये हैं। और सूती